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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [30] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ अमरचंदजी की याद महाराजा साहेब को जन्मभर रही । राव अमरचंदजी का व्यक्तित्व और संतति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ आपका व्यक्तित्व बहुत चढ़ा बढ़ा था । आपका सारा जीवन राज्य की सेवा में और युद्धस्थल में बीता । आप एक महान वीर योद्धा थे । राजनैतिक और सैनिक क्षेत्र में आपका प्रभुत्व चढ़ा बढ़ा था। जहां स्वामी का पसीना बहता, वहां आप के रुधिर की नदियें बहती थी । आप सफल न्यायी और महान दूरदर्शक पुरुष थे । आप के तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः-शाह माणिकचंदजी शाह + लालचंदजी और शाह केसरीचंदजी हैं । आप तीनों भ्राताओं का जीवन राज्य की सेवा और समरस्थल में बीता, आप भी पिता की तरह सफल पराक्रमी योद्धा थे । अमरचंदजी के चित्र इस समय अमरचंदजी के तीन चित्र उपलब्ध हैं । २ चित्र आपके वंशधर शाह श्री सेसकरणजी सुराणा के पास है और तीसरा चित्र जैन साहित्य के अभ्यासी और संग्रहकर्ता मेरे श्रद्धेय मामाजी व भाईजी श्री अगरचंदजी भंवरलालजी नाहटा के संग्रह में है । नाहटा बन्धुबाला चित्र इसभाव का है : - यह चित्र सुन्दर रंगीन और मझोलिया साइझ का है । अमरचंदजी हाथ में एक खास रुक्का लिये हुए गद्दी पर बैठे हुए हैं, रुक्के पर कुछ लिखा हुआ मालुम पडता है, मगर वह स्पष्ट नहीं पढा जा सकता । एक दास पीछे खडा खडा पंखा झाल रहा है। आपने राठौडी पौशाक और पगडी पहनी हुई है । अमरचंदजी का धार्मिक प्रेम ★ अमरचंदजी खरतरगच्छीय जैन अनुयायी थे । आप दादाजी श्री जिनकुशलसूर के भक्त थे । धार्मिक कार्यों में बहूत रुपया दान करते थे । आपने रतनगढ ( बीकानेर ) में कुए के पास दादाजी के चरणपादुकाओं की प्रतिष्ठा कोठारी उत्तमचंदजी से कराई थी । यह छतरी अभी तक बिद्यमान है, जिसका कुछ वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार बीकानेर निवासी श्री भंवरलालजी रामपुरीयाने कराया था । आपने रतनगढ में एक कुआ अपने भाई फूलचंदजी सुराणा की याद में फुलसागर नामक बनवाया जो अभी तक विद्यमान है । और भी आप दीन हीन जनों की सेवा करने में बहूत द्रव्य व्यय करते थे । तत्कालीन आचार्य श्री जिनहर्षसूरि ने आपको एक पत्र दिया था, + आप तीनों भ्राताओं का अलग अलग जीवनचरित्र इसी पत्र के किसी अगले अंको में प्रकाशित करने की भावना है । For Private And Personal Use Only *चरण पादुकाओं का लेख बाबू श्री अगरचंदजी भंवरलालजी नाहटा की ओर से शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले 'बीकानेर जैन लेख संग्रह ' में देखीये ।
SR No.521562
Book TitleJain Satyaprakash 1940 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages54
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size25 MB
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