________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
અંક ૧] દીવાન રાવ શાહ અમરચંદજી સુરાણું [ ૨૯ ] को छोड़ कर शेष को कतल कर दिया गया । इस तरह से एकबार अमरचंदजी ने अनेक विद्रोही ठाकुरों को सजा देना कतल करना आदि से विद्रोह की धधकती हुई अग्निज्वाला को शांत किया।
अमरचंदजी की इस खिदमत की महाराजा सूरतसिंहजी ने बड़ी कदर की । दावत में साठ (६०) किस्म की शारिनी तैयार हुई ।
वि. सं १८७१ ( ई. स. १८१४ ) में चुरुका ठाकुर शिवसिंह बागी हो गया । इस पर महाराजा साहब ने अमरचंदजी को सेनापति बनाकर प्रथम भाद्रपद मास में ससैन्य चुरू भेजा। आपने जाकर शहेर को घेर लिया और शत्रु के आवागमन को रोक दिया । और दैवयोग से ठाकुर की रसद भी आपके हाथ लग गई । किले में रसद की कमी होने की वजह से ठा० शिवसिंह बहुत दिनों तक आपके मुकाबले नहीं रह सका। ठाकुर शिवसिंह ने अपमान को अपेक्षा मृत्यु को उचित समझकर हीरे की कणी खाकर अपने आपका आत्मघात कर लिया।
अमरचंदजी की इस कामयाबी से महाराजा सुरतसिंह जी बड़े खुश हुए और आपको 'राव' के खिताब से विभूषित किया और एक खिलअत और सवारी के लिये महाराजा ने आपको हाथी प्रदान किया ।
अमरचंदजी का भाग्य का सितारा अब पूर्णरूप से प्रकाशमान हो चुका था । उनकी प्रतिभा को देख, उनके विरोधी अब ज्यादा देर नहीं ठहर सके । अकस्मात आप पर महाराजा सुरतसिंहजी की अकृपा हो गई । उनके शत्रु चैनपड़िहार, रामकर्ण, आसकर्ण आदिने एक जाली चिट्ठी नवाब मीरखां के मुंशी की तरफ से आपको लिखी हुई बनाकर महाराजा सूरतसिंहजी के समक्ष पेश की और कहा-अमरचंद नवाब मीरखां के साथ ९० हजार फौज के साथ बीकानेर में उपद्रव करेगा। इससे महाराजा साहब ने अमरचंदजी को गिरफ्तार करा लिया । आपने अपनी निर्दोषता साबित करने के लिये बहुत कोशिश को और खेतड़ी महाराज आपके लिये तीन लाख रुपयों का जुरमाना भरने के लिये उद्यत हो गया। पर सब व्यर्थ हुआ, एक भी नहीं सुनी गई।
अंत में वीरवर दीवान राव शाह अमरचंदजी सिर्फ झूठी शिकायतों के कारण कतल कर दिये गये । यह घटना वि. सं. १८७२ [ई. स. १८१५] की है । इससे एक चमकता हुआ सूर्य सदा के लिये अस्त हो गया।
राजा लोग कान के कच्चे हुआ करते हैं, यह कहावत पूर्णरूप से चरितार्थ हो गई । महाराजा सूरतसिंहजी ने विरोधियों के झूठे वहकावे में आकर अमरचंदजी जैसे रत्न का नाश कर दिया। जब महाराजा को वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो उन्हें इस बात का पश्चात्ताप आजीवन रहा । जब चुरु के ठाकुर पृथ्वीसिंह ने उत्पात किया तो उस समय महाराजा को आप की याद आई । अब क्या हो सकता था ? अगर हो सकता तो सिर्फ पश्चात्ताप !
For Private And Personal Use Only