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[२८] શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ
[१६ वीरता के कार्य के उपलक्ष में महाराजा ने उपहार में शाह अमरचंदजी को पालकी की इज्जत दे कर और दिवान के उच्च पद पर सुशोमित किया ।
वि. सं. १८६५ [ ई. सं. १८०८ ] में जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंहजीने अपने दीवान इन्द्रराज सिंघवी के मातहती में ८० हजार सेना लेकर बीकानेर पर चढाई की । तत्कालीन बीकानेर नरेश महाराजा सूरसिंहजीने भी विशाल सेना एकत्रित कर शाह अमरचंदजी की मातहती में जोधपुर के विरुद्ध भेजी । उन्होंने शत्रुसेना का असाधारण वीरता एवं होशियारी से मुकाबला किया और जोधपुरी सेना के माल असबाब आदि के साथ बीकानेर वापिस लौट आये । जोधपुरी सेना दो मास तक छोटी छोटी लड़ाइयां करती हुए गजनेर में पड़ी रही। दो मास समाप्त होने पर महाराजा मानसिंहजी की आज्ञा से कल्याणमल लोढ़ाने ४ हजार जोधपुरी सेना लेकर बीकानेर पर चढाइ की । इस पर सुराणा अमरचंदजी उसका सामना करने के लिए गजनेर भेजे गए । सुराणाजी का ससैन्य आना सुन कर वह [ लोढा ] ससैन्य भाग निकला । अमरचंदजी ने उसका पिछा कर, एक कोस की दूरी पर पकड लिया और उसे लडाई करने के लिए बाध्य किया और थोडी देर में अमरचंदजी ने लोढा कल्याणमल को वंदी बना कर महाराजा साहेब की सेवा में बीकानेर भिजवा दिया। ___ महाराजा सूरतसिंहजी के राज्यकाल में ठाकुर लोग बहुत बागी हो रहै थे, इनका दमन करने के लिए महाराजा साहब ने दीवान अमरचंदजी को नियुक्त किया। वि. सं. १८६६ से वि. सं. १८७० तक आपने बागी ठाकुरों को बहुत कठोर सजाएं दी।
वि. सं. १८६६ (ई. स. १८०९) में विद्रोही सांडचे का ठाकुर जैतसिंह बीकानेर में पकड लिया गया । उसको मुक्त करने के लिये दीवान अमरचन्दजी ने सांडवे जाकर अस्सी हजार रुपये जुरमाने के लगाये।
वि. सं. १८६७ ( ई. सं. १८१०) में महाराजा सूरतसिंहजी ने अमरचंदजी को भूकर के थाने पर थानेदार नियुक्त किया ।
वि. सं. १८६८ (ई. सं. १८११) में अमरचंदजी ने सूरजगढ जो शेखावाटी में था लूंटा और वहां से बहुत सा माल असबाब बीकानेर लाये।
वि. सं. १८६९ ( ई. स १८१२ ) में अमरचंदजी ने फौज सहित मैणासर के बीदावतों पर आक्रमण किया और वहां के विद्रोही ठाकुर रत्नसिंह को रतनगढ में कैद कर महाराजा साहेब की आज्ञा से उसे फांसी पर लटका दिया गया । धीरदान में ३०० बागी भाटीयों को कत्लेआम कर दिया गया । सिर्फ एक आदमी भाग्य से बच गया ।
वि. सं. १८७० ( ई. स. १८१२ ) में अमरचंदजी सीधमुख गये। सीधमुख के ठाकुर नाहरसिंह और पूरनसिंह, पहाड़सिंह, रामसिंह, लक्ष्मणसिंह आदि विद्रोही ठाकुरों को पकड़ कर बीकानेर लाये । इसमें लछमणसिंह
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