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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवान राव शाह अमरचंदजी सुराणा लेखकः-श्रीयुत हजारीमलजी बांठिया राजपूताने के राजनैतिक क्षेत्र में ओसवाल वीरों का महत्वपूर्ण स्थान है । धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक और सैनिक प्रगति में इस प्रान्त का कोई ऐसा भाग नहीं है, जहां वे पिछे रहे हों। प्रत्येक राज्य का इतिहास ओस. बाल वीरों के त्याग, आत्मबलिदान और बुद्धिचातुर्य से सुशोभित है । बीकानेर के ओसवालों में बच्छावतों और बैदों के पश्चात् सूराणों का सितारा चमकता था। बीकानेर नरेश महाराजा सूरसिंहजी के राज्यकाल से लेकर महाराजा सरदारसिंहजी के राज्यकाल तक जिन जिन ओसवाल मुत्सदियों ने अपने महान कार्यों से बीकानेर राज्य की जो सेवाओं की वे इस राज्य के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखे जाने योग्य है और राजस्थान के वीरता एवं गौरव पूर्ण इतिहास में जो ख्याति पाते है, उनमें वीरशिरोमणि दीवान राव शाह अमरचंदजी का आसन ऊंचा है। शाह अमरचंदजी शेठ मलूकचंदजी सुराणा के पौत्र और शाह कस्तुरचंदजी के ज्येष्ठ पुत्र थे । यह अभी तक निश्चय नहीं हो पाया है कि आपका जन्म कब हुआ था । आप बचपन से ही वीर और उदार प्रकृति के पुरुष थे । जब आप १०-११ वर्ष के थे तभी आपने तलवार कटार चलाना आदि अच्छी तरह से सीख लिए थे। आपके बचपन की तलवार अब भी आप के वंशधर शाह सेसकरणजी जतनलालजी सुराणा के पास विद्यमान है। राजनैतिक और सैनिक क्षेत्र वि. सं. १८६० ( ई. सं. १८०३) में बीकानेर से एक सेना चुरु भेजी गई, जिसमें शाह मुलतानमल खजाश्ची व जालिमसिंह पडिहार आदि भी थे । आपने वहां पहुंच कर चुरु के स्वामी से २१ हजार रुपये वसूल किए । । _ वि. सं. १८६१ ( ई. सं. १८०४ ) में जब भटनेर के किलेदार खान जाब्तारखां भट्टीने सिर उठाया तो महाराजा सूरसिंहजी ने शाह अमरचंदजी को मातहती में चार हजार राठौडी सेना भटनेर भेजी । आपने जाते ही किले के पासवाले कुए अनुपसागर पर मिगसर कृष्णा २ को अधिकार कर लिया और किले के चारों और मोरचा बांध कर डट गये । पांच मास तक किले की रक्षा करने के बाद रसद की कमी के कारण भट्टी लोग भूखों मरने लगे तो जाब्ताखां स्वयं किले को शाह अमरचंदजी के करकमलों में सुपुर्द कर अपने साथियों सहित पंजाब की ओर चला गया । यह बात वैसाख बदि ४ वार मंगलवार वि. सं. १८६२ की है । मंगलवार के दिन भटनेर का किला विजय होने के कारण भटनेर के किले का नाम हनुमानगढ रखा गया । इस For Private And Personal Use Only
SR No.521562
Book TitleJain Satyaprakash 1940 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages54
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size25 MB
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