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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८] એક નવિન ઐતિહાસિક કાવ્ય प्रथम प्रस्ताव :-प्रलोक १ से ११ तक में, नाभेय, वीर अन्य जिनेश्वर, गौतम, सुधर्मा, मुनिचंद्रसूरि, देवसूरि, हेमप्रभसूरि, गुरु जयशेखर, वज्रसेन आदि व शारदा को वंदन । श्लोक १२ से १९ गर्वपरिहार, वज्रसेनादि कवियों की उक्ति का अवलम्बन कर ग्रन्थ प्रारम्भ करने का कथन । १८ से २७-काव्य वही है जो धर्म से सम्बन्ध रखे, और जिसमें चौर्य एवं अर्थशून्यता आदि दोष न हो । २८ से ३७-समालोचकों का प्रसन्न करना कठिन है, खलनिन्दा और सज्जन प्रशंसा । ३८ से ४०-देवसूरिचरित्र से अनेक लाभ सोचकर ग्रन्थरचना का प्रारंभ। ४१ से ५७-भारतप्रशंसा, शतोत्तराष्टदश नामक देश की प्रशंसा, उसमें माधूहडा नाम नगर और वहां वीरनाग श्रेष्ठि । ५८ से ६८-बीरनाग मुनिचंद्र का शिष्य, उसकी प्रशंसा, उसकी पत्नी जिनदेवी को गर्भ और मुखमें पूर्णचन्द्रप्रवेश का स्वप्न । सं. ११४३ षष्टी तपो मास कृष्णपक्षे हस्तनक्षत्र सोमवार को देवसूरि का जन्म । ८१ से ९२-पुत्रजन्मोत्सव, स्वप्नानुसार पूर्णचन्द्र नाम रखना, पूर्णचन्द्रवृद्धि। द्वितीय प्रस्ताव :-श्लोक १-६-प्राग्वाटवंशगगनांगणपूर्णचन्द्र का अध्ययनादि । ७-११-दुर्भिक्ष एवं पूर्णचन्द्र का लाट देश के लिये प्रयाण । १२-६५-भृगुकच्छ में मुनिसुव्रत द्वारा अश्वावबोध आदि को कथाएं । ६६-७०-~-भृगुकच्छ में पूर्णचन्द्र द्वारा वाणिज्य, एक गृहपति से अंजलिभर दीनारों की प्राप्ति, गृहपतिके यहां दीनारों की उत्पत्ति, पूर्णचन्द्र का चमत्कार। ७१-७७.-माता पिता का वार्ता सुनने पर आश्चर्य । ७८-८९-मुनिचन्द्रसूरि का आगमन । वीरनाग का गुरुके पास जाकर पुत्र के सम्बन्ध में प्रश्न | उसके शुभ लक्षणों का वर्णन कर उसकी याचना। ९०-१३९ -जिनदेवी से सलाह, पूर्णचन्द्र द्वारा भवसागर की निन्दा, माताको व्रत की कठिनताऐं समझाना, पूर्णचन्द्र का उत्तर, माता की अनुमति से गुरुचरणों में समर्पण । तृतीय प्रस्ताव :-श्लो.१-२८-दीक्षार्थ बालक का मुंडन, अश्वारोहणउत्सवादि। २९-४३-दोक्षा नाम रामचंद्र, उनके गुरुबंधु विमलेंदु, अशोकचंद्र हरिसोम, पावचंद्र। ४४-४५-षडग्रीवनिका का अध्ययन, छंद, कथा, नाटक, ज्योतिष, अलंकार, प्रमाण, आगम आदि का अध्ययन । ४६-५१-धवलकपुर में शिवसौख्य ब्राह्मण की पराजय । सत्यपुर में काश्मीर कीरपुर विजय । चित्रकूट में अलाक राजा के सामने मीमांसक वस्तुभूति की पराजय । नरवर मे धीसार और त्रिभुवनगिरि दुर्ग में रक्त For Private And Personal Use Only
SR No.521556
Book TitleJain Satyaprakash 1940 04 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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