SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International २३१-२] અમને સિતારે कुछ विद्वानोंने मंचपुरी के शिलालेख से यह अनुमान उसने ६७ वर्ष की आयु तक अवश्य राज्य किया होगा । [ ४७ ] लगाया है कि महाराजा खारवेल का कुछ परिचय मयंत स्थविरावली से भी मिला है. यह विक्रम की दूसरी शताब्दी के विख्यात आचार्यश्री स्कंदरि के शिष्य आचार्यश्री हेमतने संक्षेप में एक स्थविराटखी थी, उसमें मगधका राजा नन्द और कलिंग का राजा मिराजा लिखा है। श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवाल ने भी स्वीकृत किया है कि महाराजा चारवेल ने विजय के बाद साधु सम्मेलन किया। खारवेल को महाविजयी खेमराजा, भिक्षुराजा, धर्मराजा उपाधियां जैन संघ और से मिट्टी। इन धार्मिक कार्यों के अतिरिक्त महाराजा खारवेल ने प्रजा के हित के लिये भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये । कलिङ्ग देश में पानी का बड़ा कष्ट था, उसके लिये प्रचुर धनव्यय कर के भी मगध से नहर लाई गई, और प्रजा का कष्ट निवारण किया । महाराजा खारवेल जैनधर्म का अनन्य भक्त था, परन्तु फिर भी उस का हृदय विशाल था, उसने किसी भी धर्मवाले को कोई कर नहीं पहुंचाया। शिलालेख की १७ पछि में लिखा है कि महाराजा वारवेल सब मर्तों का समान रूप से सम्मान करता था । महाराजा का राजसूय यज्ञ करना और वैदिक रीत्यनुसार राज्यभिषेक कराना उदारता के ज्वलन्त प्रमाण हैं । उन्होंने अपने राज्य में पौर और जानपद ( आजकल की तरह म्युनिसिपलेटी और डिस्ट्रिक्ट बोर्ड कायम किये हुए थे। प्रज्ञा के कष्ट निवारणार्थ कुर्वे, तालाय, वाग, वमीचे और अनेक औषधालय और पथिकाश्रम बनवाये। संक्षेप में हम निर्विवाद यह कह सकते हैं कि महाराजा खारवेल के साम्राज्य में धार्मिक स्वतन्त्रता के कारण किसी को कष्ट नहीं था सुख, वैभव और सम्पत्ति भरपूर थी, शान्ति और आनन्द का साम्राज्य था । સફળ જન્મ सम्यग्दर्शनशुद्धं यो ज्ञानं विरतिमेव चाप्नोति । दुखनिमित्तमपीदं तेन सुलब्धं भवति जन्म || જે સભ્યને કરીને શુદ્ધ એવા જ્ઞાન અને ચરિત્રને મેળવે છે, તે દુઃખના કારણભૂત એવા પણ જન્મને સફળ બનાવે છે. ઉમાસ્વાતિ વાચક For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.521537
Book TitleJain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy