SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International 1४५] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશનસંયાંક [ वर्ष ४ KA वर्ष बाद खारवेलने चढ़ाई को, और पुष्यमित्र को अपने आधीन कर लिया । राजा नन्द द्वारा लाई गई श्रीऋषभदेवजी की मूर्ति महाराजा खारवेल अपनी राजधानी में ले आया । मगध की चढ़ाई के विषय में श्री काशीप्रसादजी जायसवाल कहते हैं कि- खारवेलने मगध पर दो बार चढ़ाई की थी, पहली बार गोरथगिरि का गिरि दुर्ग जो अब ' बराबर पहाड़ कहलाता है, लिया और राजगृह पर हमला किया। उस समय यवन राजा 'डिमित' पटना या गया की ओर चढ़ाई कर रहा था, महाराजा खारवेल की वीर कथा सुनकर भाग निकला। इस प्रकार यवनों को भारत से बाहर खदेड़ने का श्रेय भी महाराजा खारवेल को है। शिलालेख से यह भी प्रतीत होता है कि महाराजा वारवेल एक वर्ष दिग्विजय के लिये निकलते और एक वर्ष घर पर रहते हुए महल बनवाते, दान देते एवं अन्य प्रजाहित के कार्य करते थे । महाराजा खारवेलने राज्य के ९ वे वर्ष कलिंग में महाविजय प्रसाद बनाया । हस्तीगुफा के आसपास अन्य भी अनेक गुफायें हैं, कहा तो यहां तक जाता है कि यहां पर ७५२ गुफायें विद्यमान थीं जहां पर माधु-मुनि तपस्या करते थे, यद्यपि अब उतनी उपलब्ध नहीं तथापि हाथीगुफा की खोज करने के साथ अनन्तर गुफा, सर्प गुफा, व्याघ्र गुफा, शतधर गुफा आदि का पता लगा है। जैसे हस्तीगुफा में वारवेद का जीवन अि है वैसे मांची गुफा में श्री पार्श्वचरित्र पूर्ण अङ्कित है और गणेशगुफा पर भी पार्श्वनाथजी का कुछ चरित्र अङ्कित मिला है। महाराजा खारवेल की दूसरी की सिंधुड़ा ने अपने पति की कीर्ति के लिये गिरिगुहा प्रासाद बनवाया जिसे अब रानीगौर कहते हैं, उसमें उसके पिता का नाम दिया है तथा पतिको चक्रवर्ती कहा है जिले अंग्रेजी में Emperor कहते है डाक्टर विग्लेट स्मिथ ने भी इसे स्वीकार किया है। सम्मेलन में आकर्षण था, महाराजा खारवेलने भी आचार्य श्रीसुस्थितरि की अध्यक्षता में कुमारगिरि पर जैन सभा एकत्रित की, दर देशान्तर से जैन मुनि और सेठ आदि अधिक संख्या में सम्मिलित हुए इस कुमारगिरि की यात्रा होना, अनेक मुनियों के दर्शन, तथा परस्पर विचार विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ । इस सभा का मुख्य उद्देश्य तत्कालीन दुभिक्ष से होनेवाले आगमी का उद्धार करना था। आचार्यबी के भाषण के याद महाराजा वारवेड ने जिनागम और निमन्दिरों के उद्धार की घोषणा की, महाराजा खारवेल जैनधर्म प्रचार की प्रवल भावनायें रखता था, परन्तु उस वीर का ३७ वर्ष की अवस्था में स्वर्गवास हो गया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.521537
Book TitleJain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy