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અમને સિતારે
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१६वीं शताब्दी के प्रसिद्ध तिब्बती लेखक श्री तारानाथजीने बिन्दुसार के सम्बन्ध में यह लिखा है कि बिन्दुसारने चाणक्य की सहायता से सोलह राज्यों पर विजय प्राप्त की। और इस प्रकार अपना साम्राज्य एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक विस्तृत किया ।
जैन ग्रन्थों के अनुसार भी प्रतीत होता है कि चाणक्य बिन्दुसार का भी प्रधान मंत्री था। बिन्दुसार के समय में यद्यपि कोई विशेष घटना नहीं हुई, परन्तु इतना कहा जाता है कि तक्षशिला में दो बार विद्रोह उत्पन्न हुआ, परन्तु बिंदुसार के प्रभाव से किसी प्रकार की हत्याओं के बिना ही विद्रोह दबा दिये गये । बिन्दुसार ने भी चंद्रगुप्त की तरह विदेशों से सम्बन्ध काथम रखा । 'महावंश' नामक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार उसकी १६ रानियां और १०१ पुत्र थे। जैन ग्रंथों से यह पाया जाता है कि विमारने कई तीर्थयात्रायें की इतना ही नहीं बल्के अनेक जिनमंदिर प्रतिष्ठित कराये ।
प्रजा के सुख और मनोरञ्जन के लिये विद्यालय, जगह जगह कुयँ, तालाब और बगीचे बनवाने में भी विंदुसारने प्रचुर धन व्यय किया ।
इस प्रकार २६ वर्ष तक राज्यशासन करने के उपरान्त ई. स. पूर्व २७२ में बिंदुसार का देहान्त हुआ ।
१३ महाराजा सम्पति
बिंदुसार के देहान्त के पश्चात् ई. पू. २७२ में अशोक मगधराज्य पर आरूढ़ हुआ । यद्यपि प्रारंभ में सम्राट अशोक जैन था तथापि बौद्धों के प्रभाष से वह बौद्धधर्म में दीक्षित हो गया, और अपने राज्यकाल में बौद्ध धर्म का खूब विस्तार करते हुए ई. सन पूर्व २३२ तक शासन किया।
अशोक के बाद महाराजा सम्प्रतिने राज्य की बागडोर सम्भाली। कुछ ऐतिहासिकों का मत है कि अशोक के बाद उसके पुत्र कुणालने आठ वर्ष तक शासन किया और बाद में महाराजा सम्प्रतिने । परंतु अधिकांश ऐतिहासिकों का यह मत है, और जैनधर्म की भी यही मान्यता है कि अशोक का पुत्र कुणाल अपनी सौतेली माता की युति से अन्धा कर दिया गया था । इस लिये उस राज्य का शासन महाराज सम्प्रतिने किया । इतिहासज्ञों का यह भी मत है कि अशोक के समय ही सम्प्रति युबराज था, इस बात की पुष्टि बीद्धों के दिव्यावदान' ग्रंथ में वर्णित घटना से होती है-" सम्राट अशोकने १०० करोड़ का दान बौद्धों को देने का वचन दिया था जिसमें से ९० करोड़ तो वह बौद्धों को दे चुका था । अवशिष्ट १० करोड़ उसके पास नहीं थे. उसने राज्यकोष से दिलाने को आशा की, परंतु सम्पतिने राज्यकोष से दिलाने में रुका वट पैदा कर दी और अशोक अपना वचन पूर्ण न कर सका ।
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