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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ-વિશેષાંક
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गोलाकार दीपक रखने के लिये जो रचना हुई हुई है, उसके निर्वाह के लिये लगभग २२ हजार दीनार का (२॥ लाख का) वार्षिक दान दिया, यह बात सर कनिंगहाम जैसे तटस्थ और प्रामाणिक विद्वानने 'भिल्सा स्तूप' नामक पुस्तक में प्रकट की है। यह घटना सिद्ध करती है कि-"उस स्तूप का तथा अन्य स्तूपों का चंद्रगुप्त और उसके जैनधर्म से ही गाढ सम्बन्ध था अथवा होना चाहिये यह निर्विवाद कह सकते हैं।"
सम्राट चंद्रगुप्तने २४ वर्ष तक राज्य शासन चलाया और ई. स. २९२ पूर्व ५० वर्ष की आयु में नश्वर शरीर का त्याग किया। जैन मान्यतानुसार बारह वर्ष के भयङ्कर दुर्भिक्ष पड़ने पर चंद्रगुप्त राज्य त्याग कर आचार्य श्री भद्रबाहुजी का शिष्य बन मैसूर की ओर गया और श्रवणबेलगोला में + तपस्या एवं अनशत व्रत द्वारा समाधिमरण प्राप्त किया। २ बिन्दुसार
सम्राट चंद्रगुप्त ने संसार से विरक्त होकर दीक्षा लेने से पूर्व अपना विशाल साम्राज्य ई. स. २९८ पूर्व अपने पुत्र बिंदुसार को दिया। ऐतिहासिकों का मत है कि बिंदुसार भी चंद्रगुप्त की तरह वीर, पराक्रमी, कुशल राजनीतिज्ञ एवं जैनधर्म का अनुयायो तथा प्रचारक या।
श्री सत्यकेतुजी विद्यालङ्कार ‘मौर्य साम्राज्य का इतिहास' पृष्ठ ४२० पर लिखते हैं कि पुराणों में बिंदुसार के अनेक नाम उल्लिखित हैं-विष्णु पुराण, कलियुग राज वृत्तान्त. दीपवंश और महावंश में बिंदुसार' शब्द आता है, परंतु वायुपुराण में 'भद्रसार तथा कुछ अन्य पुराणों में 'वारिसार' शब्द आते हैं। ग्रीक लेखकोंने चंद्रगुप्त के उत्तराधिकारी का नाम एमित्रोचेटस (A litrexiantees ) लिखा है। डॉ. फ्लीट के अनुसार इसका संस्कृत स्वरूप 'अमित्रघात' या ' अमित्रखार' है।
जैन ग्रंथों में बिंदुसार' का अपर नाम सिंहसेन आता है, श्री हेमचद्राचार्यजीने परिशिष्ट पर्व में बिंदुसार नाम पडने का कारण भी दिया है-'चाणक्य, चंद्रगुप्त की सर्वथा रक्षा के लिये उसे विष खाने का अभ्यास कराने लगा और उसके लिये उसे भोजन में विष देना आरम्भ किया, परंतु एक दिन उसकी स्त्री भी उसके साथ भोजन करने बैठ गई, उस पर विष का प्रभाव दुका, और उसकी मृत्यु हो गई। उन दिनों स्त्री गर्भवती थी, इस लिये चाणक्यने उसका पेट फडवाकर बच्चा निकलवा लिया। उस समय बालक के सिर पर विदुमात्र विष लगा हुआ था इस लिये उसका नाम बिंदुसार' पड गया।' ___+ श्रमणबेलगोल के शिलालेख में जिस चंद्रगुप्त का उल्लेख है वह चंद्रगुप्त सम्राट चंद्रगुप्त से भिन्न होना चाहिए, क्यों कि समय के हिसाब से सम्राट चंद्रगुप्त का उस समय होना शक्य नहीं। -सम्पादक
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