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[२०२] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
વર્ષ ૩ ऐसी जो संज्ञा दी जाती है वह “भूतगति" न्यायसे है+।
वास्तवमें एक समयमें १०८ पुरुष २० स्त्री या १० नपुंसक मुक्त होते हैं पैसे शास्त्रीय कथनसे चौदहवे गुणस्थानके स्त्रीजीव स्त्री माने जाते हैं, वह भूतगति याने पूर्ववर्ति अपेक्षासे युत्ति युक्त है । इस गाथामें स्त्री-मोक्षका स्पष्ट विधान है।
दिगम्बर विद्वान इस विधानको कैसे सहसकें अतः किसी दि. विद्वानने नये पाठ व शास्त्र बनाकर महापुरुषोंके नामपर चडा देने की आदतसे नयी नयी कई गाथाएं बनाकर गोम्मटसार में भरदी हैं । जैसे:
अंतिम तिगसंहननस्सुदओ पुण कम्मभूमिमहिलाणं ॥ आदिमतिगसंहडण, णत्थीति जिणेहिं णिदिलृ ॥ ३२ ॥
गौम्मटसार कर्मकांड, अ० १, गाथा ३२ ॥ मगर यह गाथा आगे पीछे की गाथाओंसे बिलकुल मिलती नहीं है, अकर्म भूमिमें याने आदिके तीन आरेमें स्त्रीओंके छे संघयण होते हैं जब अयुगलिक युगमें एकदम तीन संहननका अभाव हो जाय यह कैसे माना जाय ? गोम्मटसारमें बन्धोदयसत्वाधिकारमें स्त्रीओंके छे संहनन बताये हैं और उपर लिखित गाथाओंसे स्त्रीओंका शुरूके तीन संहनन ही नहीं किन्तु मोक्ष भी सिद्ध है इत्यादि कारणोंसे श्रीमान् अर्जुनलालजी शेठीजीने जाहिर किया है कि
“गोम्मटसार, अ० १की यह गाथा-३२ प्रक्षिप्त है" (स्त्रीमुक्ति, पृ० २७)x
पाठक समज गये होंगे कि-आ० नेमिचंद्रजीने गोम्मटसारमें जो निरूपण किया है वह श्वेताम्बरीय अनुकरण ही हैं । दिगम्बर समाज इसे सोचे
और कल्पित मान्यताओंको दूर करे, तभी आर्षीय आज्ञापालन होगा और इन आचार्योंका प्रयत्न सफल माना जायगा ।
( क्रमशः ) __ + दिगम्बरीय तेरापंथके आदि प्रणेता पं० बनारसीदासजीने भी गोरखके नामसे भाषा चौपाई बनाकर कबुल किया है कि
जो भगदेखि भामिनी मार्ने, लिंगदेखी जो पुरुष प्रवाने । जो बिनु चिन्ह नपुंसक जोवा, कहि गोरख तीनौं घर खोवा ॥१॥ कोमल पींड कहावै चेला, कठिन पिंड सो ठेला पेला । जूना पींड कहावे बूढा, कहि गोरख ए तीनों मूढां ॥५॥
-गोरखके नाम दिन्हें, किन्हें है बनारसी ॥८॥ x “स्त्रीमुक्ति" चंद्रसेन जैन इटावावाले दि० महाशयने प्रकाशित किया । प्रस्तुत लेखमें स्त्रीमुक्ति पुस्तकका अधिक ऋण लिया है।
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