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दिगंबर शास्त्र कैसे बने ? लेखकः-मुनिराज श्री दर्शनविजयजो
(गतांक से क्रमशः )
प्रकरण १६-आ. नेमिचंद्रजी दिगम्बर समाजमें आ० नेमिचन्द्रजी प्रख्यात ग्रन्थनिर्माता हैं । आप कर्णाटक के प्रसिद्ध मंत्री चामुण्डराज के गुरु हैं । चामुण्डराजका समय निर्णय इस प्रकार है
कल्यब्दे षट्शताख्ये वितनुतविभवसंवत्सरे मासि चैत्रे, पञ्चम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे। सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्तां चकार, श्रीमच्चामुण्डराजो बेल्गुलनगरे गोमटेशप्रतिष्ठाम् ॥५५ ।।
-बाहुबलि चरित्र, श्लो० ५५ ॥ इसके अनुसार कल्की (शक) के संवत् ६०० (वि० सं० ७३५ ) में श्रीचामुण्डने चैत्रशुक्ला पंचमी रविवारके दिन श्रवण बेल्गुलनगरमें श्री गोमटस्वामीकी प्रतिष्ठा की।
-श्रीजवाहरलाल शास्त्री लिखित, “वृहद्रव्यसंग्रह" प्रस्तावना पृ०३ इस उल्लेखके अनुसार आपका समय विक्रमकी आठवी शताब्दीका है। परमार्थसे तो आपके समय निर्णयमें भी विसंवाद है।
मैं गत प्रकरणमें लिख चुका हूं कि-श्वेताम्बर जैन साहित्यसे बहुत कुछ ऋण लेकर चामुण्डपुराण और महापुराणका निर्माण हुआ है। आ० नेमिचन्द्रजीकी ग्रन्थसृष्टिके लिये भी इससे भिन्न कुछ नहीं हिर जा सकता। __ आ० नेमचन्द्रजीने अपने ग्रन्थ किस आधार पर बनाये इसके लिये पं० मनोहरलालजी बचाव करते हैं कि___“उन षट्खंड सूत्रोंको अन्य आचार्योंने पढ़कर उसके अनुसार विस्तारसे धवल महाधवल जयधघलादि टीकाग्रंथ रचे । उन सिद्धांत ग्रन्थोंको प्रातःस्मरणीय भगवान् श्रीनेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती आचार्य महाराज ने पढ़कर श्रीगोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणसारादि ग्रन्थोंकी रचना की।"
-गोम्मटसारकी प्रस्तावना. यहां उक्त पंडितजीने जो कल्पना की है वह आधाराहीन है, क्यों कि धवलादि शास्त्रोंका रचनाकाल शक सं० ७५९ है जब आ० नेमिचन्द्रजीदा समय शक सं० ६०० के करीबका है, इस परिस्थितिमें धवलादिके आधार पर गोम्मटसारादिका देहनिर्माण मानना यह सरासर झूठी कल्पना है।
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