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"या" मासिन “सत
” भानु
ભગવાન મહાવીરસ્વામીનું ચિત્ર
२५५रथी प्रसि यता " स्या" नाम लि.ही भासि पत्र · संत " નામક વિશેષ અંકમાં ભગવાન મહાવીર સ્વામીનું જે ચિત્ર છપાયું હતું તે સંબંધી વિગતવાર લખાણ તેમજ તે ચિત્ર બાબતનો “કલ્યાણ”ના તંત્રીશ્રીને ખુલાસો અમે શ્રીજોનસત્યપ્રકાશ” ના ક્રમાંક ૨૬-૨૭ મા અંકમાં પ્રગટ કરી ચૂક્યા છીએ. પિતાના ખુલાસામાં લખ્યા પ્રમાણે “કલ્યાણના તંત્રીશ્રીએ “કલ્યાણ”ના માગશર માસના અંકમાં તે ચિત્ર સંબંધમાં જે નેંધ પ્રકટ કરી છે તે વાચકેની જાણ માટે અમે અહીં રજૂ કરીએ છીએ.
भगवान् महावीर स्वामीके चित्रके सम्बन्धमें मतभेद "संत-अंकमें भगवान् श्रीमहावीर स्वामीका एक चित्र छपा था। चित्र किन्हीं एक जैन महानुभावने ही भेजा था। इसपर जैनसत्यप्रकाशके सम्पादक महोदयने तथा और भी दो-तीन सजनोंने यह लिखा कि यह चित्र जैनियोंकी मान्यताके अनुसार महावीर स्वामीका नहीं है, इससे जैन-समाजको बडा दुःख हुआ है । आप इस भूलका संशोधन कर दें। 'कल्याण' महावीर स्वामीको श्रद्धाकी दृष्टिसे देखता है परन्तु उसको यह मालूम नहीं कि महावीर स्वामीका स्वरूप और वेशभूषा कैसा था। और न कल्याण किन्हीं सज्जनोंको दुःख ही पहुँचाना चाहता है अतएव जैनसत्यप्रकाशके सम्पादकको लिख दिया गया कि अगले अंकमें इस विषयपर लिख दिया जायगा । उन्होंने हमारे पत्रको छाप दिया, इससे दूसरे पक्षके लोगोंके और संस्थाओंके भी हमारे पास कई पत्र आये हैं जिनमें लिखा है कि महावीर स्वामीका जो चित्र छपा है, वही ठीक है। जो कुछ भी हो, कल्याणको न तो इस विवादमें पडना है और न किसीका जी ही दुखाना है। महावीर स्वामीका यह चित्र तो छप ही गया, दूसरा चित्र दूसरे सज्जनोंकी मान्यताका-जो उन्होंने भेजा है-संत-अंकके दूसरे संस्करणमें छाप देनेका विचार है। इससे आशा है दोनों दल सन्तुष्ट हो जायँगे । हमें पता नहीं था कि जैन-सम्प्रदायमें महावीर स्वामीके वेशभूषाको लेकर इतना अधिक विरोध है। हमारे कारण जिन महानुभावोंको दुःख पहुँचा है या पहुँचनेकी सम्भावना है, उन सबसे हम विनयपूर्वक क्षमा चाहते हैं।"
-सम्पादक
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