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४ ] શ્રી અબુદાચલ પ્રબન્ધ
(२१७) की थी, अन्त में धरणेन्द्र के प्रकट होने पर सूरिमन्त्र की अशुद्धता ज्ञात कर श्रीसीमंधर स्वामी के पास महाविदेह क्षत्रमें भेज कर शुद्ध कराना व पश्चात् देवों का प्रकट हो कर अर्बुदगिरि पर प्राचीन जिनबिम्ब होने
और उसके प्रकट होने के लक्षण, स्थान, उपाय निर्देश करने का अच्छा - वर्णन एक अर्बुदाचल प्रबन्ध से मिलता है। वही अर्बुदाचल प्रबन्ध एक पुरानी प्रतिसे उद्धृत कर यहाँ प्रकाशित कर रहा हूं। आशा है इससे समुचित प्रकाश पड़ेगा। इसकी भाषा प्राकृत होने पर भी अत्यन्त सुगम है अतएव अनुवाद देना अनावश्यक है।
श्रीअर्बुदाचल प्रबन्ध अह अन्नया कयाइ सिरिवद्धमाणसरि आयरिया अरण्णचारि गच्छनायगा सिरिउज्जोयणसूरिणो गामाणुगाम दुइज्जमाणा अप्पडिबन्धेणं विहारेणं विहरमाणा अब्बुयगिरिसिहरतलहटीए का सद्दहगामे समागया, तयाणंतरे विमलदंडनायगो पोरवाड़वंशमण्डणो देसभागं उग्गाहेमाणो सो वि तत्थेवागओ । अब्बुयगिरिसिहरे चडिओ सव्वओ पव्वयं पासित्ता पमुइओ चित्ते, चिंतेउमाटतो इत्थ जिणपासायं कारेमि ताव अचलेसर दुग्गवासिणो जोगी जंगम तावस सन्नासिणो माहणप्पमुहा दुट्ठमिच्छत्तिणो मिलिऊण विमलसाहु दण्डनायगसमीवं आढत्ता एवं वयासी भो विमल! तुम्हाणं इत्थं तित्थं नत्थि, अम्हाणं तित्थं कुलपरंपरायातं वट्टइ, अओ इहेव तव जिणपासायं काउं न देमो, तओ विमलो विलक्खो जाओ, अब्बुयगिरि सिहरतलहटीए का सद्दहगामे समागओ जत्थ वद्धमाणसूरि समोसदो तत्थेव गुरुं विहिणा वंदिऊण एवं वयासी, भगवन् ! इहेव पव्वए अम्हाणं तित्थं जिणपडिमारूवं वट्टइति वा न वा, तओ गुरुणा भणियं, वच्छ! देवया आराहणेण सव्वं जाणिजइ, छउमत्था कहं जाणति तओ तेणं विमलेण पत्थणा कया, किं बहुणा । वद्धमाणसूरीहिं छम्मासी तवं कयं, तओ धरणिंदो आगओ, गुरुणा कहियं भो धरणिंदा! सूरिमंतअधिट्ठायगा चउसट्टि देवया सन्ति, ताणमझे एगावि नागया न किंचि कहियं किं कारणं ? धरणिंदेणुत्तं भयवं! तुम्हाणं सूरिमंतस्स अक्खरं वीसरियं, असुहभावाओ देवया नागच्छंति, अहं तवबलेण आगओ, गुरुणा वुत्तं भो महाभाग! पुव्वं मूरिमंतसुद्धिं करेहि पच्छा अन्न कजं कहिस्सामित्ति। धरणिंदेणुत्तं भगवन् ! मम सत्ती नत्थि वरिमंतक्खरस्ससुद्धिमसुद्धिं काउं तित्थंकर विणा, तओ सृरिणा मंतस्स गोलओ धरणिदस्स समप्पिओ तेण महाविदेहे खित्ते सीमंधरसामीपासे नीओ। तित्थंकरेण सूरिमंतो सुद्धो कओ तओ धरणिंदेण सूरिमंतगोलओ सूरीण समप्पिओ । तओ वारत्तय सूरिमंतसमरणेण सव्वे अहिट्ठायगा देवा पञ्चक्खी भूया तओ गुरुणा पुठ्ठा, विमलदंडनायगो अम्हाणं पुच्छइ अब्बुयगिरिसिहरे जिणपडिमातित्थं अत्थइ न वा? तओ तेहिं भणियं । अब्बुय
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