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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [२१] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष 3 आचार्यों का होना बतलाया है, परन्तु उसमें भी नाम नहीं दिया है । संभव है कि चैत्य प्रतिष्ठाके समय चार आचार्य विद्यमान हों परन्तु मुख्य प्रतिष्ठापक श्रीवर्द्धमानसृरिजी ही थे । मुनिराज श्री जयन्त विजयजी भी अपनी आबू नामक पुस्तक के ३४ वें पृष्ठ में लिखते हैं कि इस मन्दिर की प्रतिष्ठा विमल मंत्रीने वर्धमानसूरि के करकमलों द्वारा सं. १९०८८ में कराई । " 66 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीजिनविजयजी सम्पादित " खरतर गच्छ पदावली संग्रह " में सूरि परंपरा प्रशस्ति एवं अन्य खरतर गच्छ पट्टावलियोंमें विमलवसही की उत्पत्ति लिखी है उनसे एवं अन्य खरतर गच्छकी पट्टावलियोंसे श्रीवर्द्धमानसुरिजीका विमलवसहीकी प्रतिष्ठा कराना भलीभाँति प्रमाणित है । हमारे संग्रहमें पन्द्रहवीं शताब्दीकी एक प्राचीन “ 'खरतर गच्छ पट्टावली " है जिसमें एतद् विषयक निम्न लिखित काव्य हैं: राग - देशाख छाया. आबु ऊपरि मास छ सीम साधिउ सूरि मंत्र लेह नीम | पायाल पहुतउ धरणिंदो प्रगटियो वज्रमय आदिजिणंदो ॥ ७ ॥ मिथ्याती जे जोगिय जड़िया, सुहगुरु अतिसइ ते सहु नड़िया । जिणशासन हुउ जयवाउ, विमल तणह मनि आणंद जाउ ॥ ८ ॥ विमलसुवसहिय विमल करावी, जसु उवएसिहिं त्रिभुवनभावी । जाणि कि नन्दीसर परसादो, परतरिव देउल मिसि जसवादो ॥ ९ ॥ ॥ छंद ॥ जसवाउ जसु उवएसि लीधउ, विमलवर मंतीसरे । कारविय निरुपम विमलवसही, गरुअगिरि आबू सिरे । सिरिरिमंत्र प्रभाव प्रगटिय, सुविहितमग्ग दिवायरो | सिरिवद्धमाणमुणिंद नंदउ, सयल गुण रयणायरो ॥ १० ॥* इस अवतरण से स्पष्ट है कि विमल ने श्रीवर्द्धमानसूरिजी के सदुपदेश से ही विमलवसही निर्माण कराई थी। मुनिराज श्री जयन्तविजयजी “आबू” और नागरीप्रचारिणी पत्रिका ( श्रावण १९९४ ) में श्रीमान् धर्मघोषसूरिजी . के उपदेशसे मन्दिर निर्माण करानेका लिखते है, परन्तु इसका प्रमाण भी पांच सौ वर्ष से प्राचीन नहीं है । श्रीवर्द्धमानसूरिजी के आबू पर सूरिमन्त्र साधन करने का वृत्तान्त प्रसिद्ध है । विमलकी प्रार्थनासे उन्होंने छ मास पर्य्यन्त आबू पर तपस्या * हमारा “ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह” पृ. ४४ 4 For Private And Personal Use Only
SR No.521528
Book TitleJain Satyaprakash 1938 01 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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