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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२१८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [५५३ देवीपासाओ वामभागे अब्बुदआदिनाहस्स पडिमा वट्टा । अक्खंडक्खयसत्थियस्स उवरि चउसर पुप्फमाला जत्थ दीसइ, तत्थ खणियव्वं । इइ देवयावयणं सुच्चा गुरुणा विमलसाहुस्स पुरओ कहियं । तेण तहेव कयं । पडिमा निग्गया, विमलेण सव्वे पासंडिणो आहूया दिट्ठा जिणपडिमा सामवयणा जाया, पासायं काउमारब्धं विमलेण तओ पासंडेहि भणियं अम्हाणं भूमिदव्वं देहि! तओ विमलेण भूमीदव्वेहिं पूरिऊण पासायं कयं वद्धमाणसूरिहिं तित्थ पइट्ठियं । नवणपूयाइ सव्वं कयं । तओ पच्छागय कालेण मिच्छतिणो तस्साधीणा जाया । तओ वावन्न जिणालओ सोवन्नकलसधयसहिओ निम्मविओ विमलेण । अट्ठारस कोडी तेवन्न लक्ख संखा दव्वो लग्गो अजवि अखंडो पासाओ दीसति ॥ __प्रसङ्गवश अर्बुदगिरि पर खरतरवसही के निर्माता दरड गोत्रीय कुटुंब के कुछ नाम जो हमारे संग्रह के एक प्रशस्तिपत्रमें लिखे हैं यहां उद्धृत किये जाते हैं । इस पत्रमें सुप्रसिद्ध जयसागर उपाध्यायका संस्कृतके श्लोकोमेंx अच्छा वर्णन किया है। अन्तमें दरडावंश के नाम और कुछ ग्रन्थोंकी सूची पत्रसंख्या सहित दी है इससे ज्ञात होता है कि श्रीजिनभद्रसूरिजीके समय जो शास्त्रोद्धार और ज्ञान-भंडारों का स्थापन हुआ उसमें दरडावंशने भी अच्छा सहयोग दिया होगा! ये नाम हमने ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रहमें प्रकाशित नहीं किए हैं, अतएव यहां लिखना आवश्यक है। “॥ श्रीदरडा गोत्र ॥ सं० खीमसिंह । सं० हरिपाल । आसा । भार्यासोखू ॥ मंडलिक । पुत्र सज्जन ॥ सं० माला । सं० रत्ता । सं० साजन । सं० थावर । सं० मांडण ! सं० प्राबड़ ! संघवी उदयराजादि ॥ सा. माल्हा । सा० मांडन । वेल्हा। सं० झाटा। सं० मंडलिक । सं० माल्हा । सं० महिपति सा० गोविंद । रत्ना । हर्षा । मेघराज । सा० कीहट ॥ सा० श्रीपाल | सा० भीमसिंह । सा० साजण । सं. पोमसिंह । स. लखमसिंह । रणमल्ल । सं० थावर । सं० गणपति । सा० आबड़ । सा० उदयराज प्रमुख परिवार सहितानां ॥ संवत् १५११ वर्षे ॥ चेंत्र सुदि ५ दिने।" कुछदिन पूर्व खरतराचार्य गचछीय ज्ञान भंडारका अवलोकन करते आबू आदि तीर्थोंका एक सुन्दर, प्राचीन पट्टका दर्शन हुआ जिस पर निम्नोक्त लेख लिखा हुआ है: सं. १४९३ वर्षे अर्बुदगिरे श्री जिनभद्रसूरि सुगुरु वासक्षेप कर्ता श्री पद्मश्री महत्तरा शुभं भवतु ॥ x “ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह" पृ. ४०० में प्रकाशित. For Private And Personal Use Only
SR No.521528
Book TitleJain Satyaprakash 1938 01 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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