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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५ ३ समय के तत्कालीन मुगल बादशाह अकबरने सुनकर अपने साम्राज्यमें से हिंसा-वृत्तिको बहुत कुछ रोक दी थी। उनकी तपस्या और त्याग वृत्तिने बादशाह का चित्त जैनधर्म की ओर खींच लिया थी, जिससे जैनधर्म का विकास होकर उस तरफ उत्तरोत्तर आस्था बढती जाती थी। फलतः बादशाह अपने यहां प्रायः जैन साधुओं को बुलाकर उनसे उपदेश ग्रहण किया करता था। वह जैन समाज के लिए स्वर्ण युग था और कर्मचन्द्र वच्छावत जैसे श्रावक उसमें मौजूद थे ।" इससे भी अधिक प्रमाणभूत सम्राट अकबर के दिए हुए फरमान पत्रों के अनुवाद का आवश्यकीय उद्धरण नीचे दिया जाता है, जिससे यह बात सर्व-मान्य और प्रमाणभूत सिद्ध हो ही जायगी। “ इन दिनों में ईश्वर भक्त व ईश्वरके विषय में मनन करनेवाले जिनचंद्रसरि खरतर भट्टारक को मेरे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उसकी ईश्वरभक्ति प्रगट हुई, मैंने उसको बादशाही मिहरघानियोंसे परिपूर्ण कर दिया ।" -(युगप्रधान जिनचन्द्रमूरि, पृ. ३०६)॥ __“युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि व जिनसिंहमूरि जो ईश्वरभक्त व ईश्वर के विषय के पंडित हैं; चाहिए कि उनको तसल्ली देने का प्रयत्न करें (याने प्रसन्न रखें), कोई उनके साथियों को दुःख न देने पावे। यदि वे अपने किसी चेले या साथी को अपने पास से दूर कर दें तो किसी को ऐसे (उस) व्यक्ति की सहायता नहीं करना चाहिए। उनके उपासरों व मन्दिरों आदि में कोई भी किसी तरह से भी उनके कार्य में विघ्न न डाले।" (पृ. ३०५) “ इससे पहले शुभ चिन्तक तपस्वी जयचंद (जिनचंद्रमरि) खरतर (गच्छीय) हमारी सेवा में रहता था। जब उसकी भगवद्भक्ति प्रगट हुई तब हमने उसको अपनी बडी बादशाही मिहरवानियों में मिला लिया” “ इन दिनों आचार्य जिनसिंह उर्फ मानसिंहने अरज कराई कि जो उपर लिखे अनुसार हुक्म हुआ था वह खो गया है इस लिए हमने उस फरमान के अनुसार नया फरमान इनायत किया है । चाहिए कि जैसा लिख दिया गया है वैसा ही इस आज्ञा का पालन किया जाय! इस विषय में बहुत बडी कोशीस और ताकीद समझ कर इसके नियम में उलट फेर न होने दे । (पृ. २७८ ) एक ऐतिहासिक विषय में कोई भूल न कर बैठें इसी हेतुस हमने यह लिखा है। आशा है इससे इतिहास प्रेमियों को अवश्य महायता होगी। For Private And Personal Use Only
SR No.521525
Book TitleJain Satyaprakash 1937 09 10 SrNo 26 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages60
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size30 MB
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