SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ० जिनचंद्रसूरि और सम्राट अकबर [ एक संशोधन ] रुखक क-श्रीयुत अगरचंदजी भंवरलालजी नाहटा जैन सत्य प्रकाशके १२ में " सम्राट अकबरनो धर्म मत " नामक मुनिराज श्री शामविजयजी अनुवादित लेख प्रकाशित हुवा है । वह लेख बंगला मासिक प्रवासी " के वर्ष ३३, खंड २, अंक ५ में अब्दुल मउदुम महाशय का है । "" नामक प्रस्तुत लेखसे " जैनधर्मना जाचार्यानो सम्राट उपर प्रभाव स्थंभ से-" कहवामां आवे छे के जिनचन्द्रे अकबरने जैनधर्मनी दीक्षा ( जैनत्व ) आपी हत्ती, किन्तु जेम जेसुर धर्म याचक गण अकबरने क्रिश्चियन थवानी खोटी बातो चलावे हे, तेम आ कथन पण सर्वथा असत्य है, छर्ता जरूर हीरविजय ( सूरि ) ए अकबरने, पांजरामां पूरेला पक्षीयोने छोडवानी तथा अमुक दिवसोमां प्राणी-हत्या बंद करवानो उपदेश आप्यो हती ( इ. स. १९८२) तेणे पोताना धर्मावलम्बिओ माटे घणी अनुकूलता मेळवी हती. बरे मांसाहार छोड्यो अने प्राणीहत्या निवारी ते हीरविजयसूरि बगेरेने प्रसावे ज बन्धुं छे बनवा पाम्युं छे " "-लिखा है मूल लेखक महोदय को हमारी लिखित युगप्रधान श्री जिनचन्द्रमूरि नामक पुस्तक नहीं मिली होगी एवं शाही फरमान जो कि सन १९१२ ई. की सरस्वती में छपा है, नहीं देखा होगा | अन्यथा वह यह बात कदापि नहीं लिखता । पूज्य मुनि महोदयने उस लेख का अक्षरशः अनुवाद ही दीया है औऔर किसी विषय के संबंध में कोई भी टिप्पनी नहीं दी है अतः इस विषय के बारे में भी कोई टिप्पनी या आवश्यक संशोधन नहीं किया, अतः यह लिखा है । 1 For Private And Personal Use Only 27 हमारे उक्त ग्रन्थ में उपर्युक्त फरमान पत्र के अतिरिक्त अन्य शाही फरमान, एवं समकालीन कर्मचन्द्र मंत्रिवंश - प्रबन्ध आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ, अन्य राम, गढिएं, शिलालेख आदि सैकडों प्रमाण यत्र तत्र भरे पडे हैं। किसी विपक्ष विद्वानको जिनचन्द्रसूरिजी के साथ अकबर का क्या सम्बन्ध था यह जानने के लिए उक्त पुस्तक के पढने के बाद और प्रमाणों की आवश्यक्ता नहीं प्रतीत होगी । इतिहास के धुरन्धर विद्वान महामहोपाध्याय रायबहादूर पं० गौरीशङ्कर हीराचंद ओझाने अपनी सम्मतिमें, जो कि पुस्तक में छपी है, लिखा है कि " सत्रहवीं शताब्दी के जैन समाज के आचार्यों में एक श्रीजिनचन्द्रसूरिजी नामक बढे ही प्रभावशाली जाचार्य हो चुके हैं, जिनका उपदेश उस * सन् १५८२ होना चाहिये.
SR No.521525
Book TitleJain Satyaprakash 1937 09 10 SrNo 26 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages60
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy