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સમીક્ષાશ્રમવિકરણ " श्वेताम्बर, स्थानकवासी सम्प्रदाय को मुनिचर्या एक तो वस्त्र, पात्र, बिछौना आदि सामान रखने के कारण वैसे ही सरल थी; किन्तु कुछ आहार पानी के विषय में कष्ट होता सो यहां दूर कर दिया ।"
आना जवाबमां जणावानुं जे — श्वेताम्बर मुनिचर्या ए आधुनिक या कोई छद्मस्थनी कल्पेली नथी, परन्तु जगद्गुरु भगवान् महावीरदेवना समयनी अने महावीरादि तीर्थकरोए वर्गवेली छे. परमात्मा महावीरदेवना कालमां पण वस्त्र अने पात्रनो उपयोग निग्रंथ मुनिओ करता हता. आ वात 'बुद्धचर्या' जोनार मानवी विना संकोचे कबुल करी शके तेवी छे. तदुपरांत राजग्रही नगरीना परिसरने शोभावनार गिरि उपर निग्रंथ मुनिओने अने बौद्धने प्रश्नोत्तरो थया हता ए विषय चर्चता बौद्धग्रन्थ जणावे छे के -
“निर्ग्रथो पोताना स्थानमा आसनो नाखीने तापना स्थाने आतापना ले छे."
वळी आ स्थले ए पण एक वात ध्यानमा लेवा जेवी छे के बुद्ध तथा तेना अनुयायोओ वस्त्र, पात्र राखता हता, तेमज बौद् अने निग्रंथोने चर्चा पण थयेली छे. हवे जो निर्ग्रथो एकांत वस्त्र, पात्रना अभावने ज माननार होत तो, बुद्ध या बुद्धना अनुयायीने निग्रंथ या निर्ग्रथने अंगे बीजानी साथे आ चर्चा जरूर उपाडवी पडत, परन्तु उपाडेल नथी.
___ श्वेतांबर मुनिचर्यामां वस्त्र, पात्र, आसन वगैरे बतावेलां छे. माटे ज वास्तविक साधुताने तेओ साधी शके छे. अवधिज्ञानादि अतिशय सिवायना माणसने उपकरण सिवाय पांच महाव्रतो पाळवां मुकेल छे. कारण के तेनी साथे गाढ सम्बन्ध धरावनारी प्रथम तो पांच समिति ज पाळी शकाती नथी. आ बाबत “दिगम्बरोनी उत्पत्ति" शीर्षक लेखमा प्रथम आवी गयेल छे, छतां पण ते विषय प्रस्तुतमा विशेष उपयोगी होबाथी अहीं दाखल करवामां आवे छे. रजोहरण सिवाय ईर्यासमितिनो अभाव
__ साधु कोई जगो पर बेठा होय अने शरीर उपर के स्थान आगळ जे कोई कीडी वगेरेनुं आवq थाय तेनु, वस्त्र के उपकरण न होय तो, प्रमार्जन न थई शके ते दीवा जेवो वात छे. वळी चोमासाना काठमां शरदीने लीधे मात्रानी अधिक शंका थाय, अने तेवे वखते जो मात्रा- पात्र न होय तो अप्कायनी विराधनानो पार रहे नहि, तेमज मात्रु रोकवामां आवे तो आत्मविराधना अने छेवटे वेग न रोकावाथी थती संयमविराधना ए उपकरण अने वस्त्ररहितबाळाने माटे अनिवार्य ज छे. वळी बारे मास रात्रिनी वखत सर्वथा मात्रानी शंका थाय ज नहि के मात्रु करवा जवू पडे ज नहि एम मानी शकाय नहि. अने जेओ उपकरण के वस्त्ररहित होय तेओने मकानमाथी बहार आववामां ईर्यासमिति साधवान बने ज नहि. वळी स्तम्भ वगेरेथी आत्मविराधना न
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