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दिगम्बर शास्त्र कैसे बने ?
लेखक - मुनिराज श्री दर्शनविजयजी
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( गतांक से क्रमशः )
प्रकरण १२ - आ० पूज्यपाद ( विधानन्दीजी )
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दिगम्बर साहित्य के निर्माण में आ० कुन्दकुन्द के बाद दूसरा नम्बर स्वामी पूज्यपाद का ही आता है । यद्यपि आपके पहिले के कई आचार्यों के ग्रन्थ दिगम्बर सम्प्रदाय में मान्य हैं, किन्तु हम पूर्व के प्रकरण में सप्राण बता चुके हैं कि उन ग्रन्थों के प्रणेता श्वेतांबर आचार्य थे; सिर्फ अपनी मान्यता से प्रतिकूल न होने के कारण ही दिगम्बर संघ ने उन्हें अपनाया है । उन ग्रन्थों में श्वेतांबर का झलक स्पष्ट है ।
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आचार्य पूज्यपाद दिगम्बर आचार्य हैं, और आप अपने ढंग के अनोखे विद्वान् हैं । आपके ग्रन्थों में दिगम्बर मतसम्मत कुछ वस्तु वर्णन भी है ।
विद्यानन्दी है |
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आपका दूसरा नाम आचार्य श्रवणवेल शिलालेख नं० ४०, १०५ और १०८ में आ० पश्चात् आपका नाम उत्कीर्ण है । नं० ४० में तो आपके ५ ग्रन्थों का भी आपका समय काल ठीक विक्रम की छठी शताब्दी का पूर्वार्ध है ।
आ० देवसेन लिखते हैं कि- वि० सं० ५२६ में आ० पूज्यपाद के शिष्य वज्रनन्दी ने द्राविड मथुरा ( मदुरा ) से द्राविड संघ चलाया, जिनके दूसरे नाम हैं " द्रामिल संघ " " पुन्नाट संघ " । आ० द्वितीय जिनसेनसूरि, वादिराजसूर और श्रीपालदेव ये सब पुन्नाट संघ के आचार्य हैं । नन्दी संघ व अरुगल शाखा भी इस संघ के ही अंग हैं । किसी स्थान में स्वामी समन्त को अरुगल शाखा के आचार्य माने हैं । श्रीयुत नाथूराम प्रेमजी लिखते हैं कि इस ( द्राविड संघ ) की उत्पत्ति का समय है वि० संवत् ५२६ का और इसके उत्पादक बताये गये हैं आचार्य पूज्यपाद के शिष्य वज्रनन्दी | दक्षिण और कर्णाटक के प्रसिद्ध इतिहासज्ञ प्रो० के० बी० पाठक ने किसी कनडी ग्रन्थ के आधार से मालुम किया है कि पूज्यपाद स्वामी दुर्विनीत नाम
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समन्तभद्र के उल्लेख है ।