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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .... .. .. - ૧૯ો . ४०१ हिमसे मन श्रीमानुस्वातिरयं यतीशस्तत्त्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार ॥ १५ ॥ तस्यैव शिष्योऽजनि गृद्धपिच्छ-द्वितीयसंज्ञस्य बलाकपिच्छः ॥१६॥ – शिलालेख नं० १०५, शक सं० १३२० । अभूदुमास्वाति मुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी॥ सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुङ्गवेन ॥ ११ ॥ स प्राणिसंरक्षणसावधानो बभार योगी किल गृद्धपक्षान् ॥ तदा प्रभृत्येव बुधा यमाहु-राचार्यशब्दोत्तरगृद्धपिच्छं ॥ १२ ॥ -शिलालेख नं० १०५, शक सं० १३५५ । इन सभी शिलालेख का यह मत है कि --आप दि० आ० कुन्दकुन्द के वंश के हैं, आपने तत्त्वार्थसूत्र बनाया, आप गीध के पीच्छ को धारण करते थे । संभव है कि आ० कुन्दकुन्द से समानता करने के लिये गृपिच्छ की कल्पना की गई हो। आपके शिष्य का नाम बलाकपिच्छ है। यह नाम भी दिगम्बर कल्पित लिङ्ग के भेद का घोतक है। - उपर लिखित शिलालेखों से । आपके प्रशिष्य का नाम है गुगनन्दी । - शिला नं० ४२, ४३, ४७, ५० । पहले के प्रकरण में आ० कुन्दकुन्द का समय अनिश्चित बताया गया है। यदि उनके बाद में वाचकजी का होना माना जाय तो आपका समय भी उतना ही विसंवादी माना जायगा । ये दोनों आगे पिछे होनेवाले आचार्य हैं, किन्तु गुरु शिष्य नहीं हैं। वर्षे सप्तशते चैव, सप्तत्या च विस्मृतौ ॥ उमास्वामिमुनिर्जातः, कुन्दकुन्दस्तथैव च ॥१॥ सारांश—आ० कुन्दकुन्द और आ० उमास्वामी सं० ७७० में हुए। इस श्लोक में ३ विसंवाद हैं। १. आपका नाम उमास्वामी बताया है; सामान्यतया दि० समाज की भी यहा मान्यता है, किन्तु उपर के शिलालेख उस मान्यता के विपक्ष में हैं । यथार्थ तो यह है कि-आपका नाम उमास्वातिजी है, आपके पिता का दूसरा नाम उमास्वामी जी हैं। २. आप और आ० कुन्दकुन्द समकालीन हैं, यह बात भी कल्पित है, क्योंकि उपर लिखित शिलालेखों से इन दोनों की स्पष्ट भिन्नता पाई जाति है । ३. आप सं० ७७० में हुए, दिगम्बर मान्यता के अनुसार For Private And Personal Use Only
SR No.521518
Book TitleJain Satyaprakash 1937 02 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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