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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
માઘ उपलब्ध जिनागम और तत्त्वार्थ में श्रावक के बारह व्रत के नाम एक से हैं । ५५ तत्त्वार्थसूत्र के श्रावक के व्रत के विवेचन में ८मूल गुण और प्रतिमा के विधान नहीं हैं, यही प्रवृत्ति आज भी श्वेताम्बरी श्रावकों के व्रतग्रहण में दृश्यमान है।
ये सभी प्रमाण श्वेताम्बर आचार्य वा० उमास्वाति की जीवनी पर काफी प्रकाश डालते हैं।
अब वा० उमास्वाति का स्थान दिगम्बर सम्प्रदाय में क्या है उसे देखियेः
दिगम्बर समाज आपके तत्वार्थसूत्र को सादर स्वीकार करता है। और इस तत्त्वार्थ सूत्र के अतिरिक्त आपके किसी ग्रन्थ को नहीं मानता।।
___ दिगम्बर शास्त्रों में वाचकजी के गच्छ, गण, शाखा, संघ, गुरु, माता, पिता, जन्मभूमि, विहारभूमि या भिन्न भिन्न अन्यों की रचना इत्यादि किसी बात का इशारा भी नहीं मिलता।
दिगम्बर शास्त्रों में आपके संबन्ध में केवल निम्न प्रकार उल्लेख प्राप्य है: -
आपका नाम उमास्वामीजी है । आपका दूसरा नाम "गृपिच्छ" है । आप केवलि-देशीय याने पूर्ववित् थे । तथा
अभूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसा-वाचार्यशब्दोत्तरगृद्धपृच्छः ।
तदन्वये तत्सदृशोऽस्ति नान्यस्तात्कालिकाऽशेषपदार्थवेदी ॥४-५॥ --प्रो० हीरालालजी जैन M. A. L. L. B. सम्पादित जै० शि० सं० भा० १, शक शताब्दी ११ में खुदे हुए शिला० नं० ४०, ४२, ४३, ४७, ५० ।।
५५. इस विषय की चर्चा स्वामी समंतभद्र के प्रकरण में की जायगी । .
५६. दिगम्बर शास्त्रों में ८ मूलगुण की कल्पना की गई है । मगर वे कल्पना-प्रधान होने से उनके लिए दि. आचार्यों में बडा मतभेद है । देखिये
(१) स्वामी समन्तभद्र ५ अणुव्रत के स्वीकार और ६ मद्य, ७ मांस व ८ शहद के त्याग को मूल गुण मानते हैं।
(२) आ. जिनसेन शहद के स्थान पर "जूआ" को बताते हैं । . (३) आ० सोमदेव, आ. देवसेन व कवि राजमल ने ५ उदुंबर फल, ६ सुरा, ७ मांस, व ८ शहद के त्याग को मूल गुण माने है।
(४) आ. शिवकोटि जूए को छोड कर, उपर के सभी को मूल गुण कहते हैं ।
(.) आ० अमितगति रात्रिभोजन सहित आ० सोमदेव मान्य सभी म्ल गुणों को मूल गुण मानते है ।
(६) पं. शशाधरजी का मत है कि-मतांतर से मांस-सुग-शहद-रात्रिभोजन-पांच फल के त्याग, जिनेन्द्र को नमस्कार, जीवदया, और जल का छानना म्ल गुण हैं ।
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