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दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें ?
लेखक - मुनिराज श्री दर्शनविजयजी.
प्रकरण ९ - वाचकवर्य श्री उमास्वातिजी
( गतांक से क्रमशः )
श्री उमास्वातिजी के तत्वार्थ भाव्य के लिये सिर्फ दिगम्बर विद्वानों का मत है
कि वह श्री उमास्वातिजी महाराज की रचना नहीं है, किन्तु उनका यह मत आग्रह -बद्ध है । क्यों कि स्वयं “ भाष्य " ही उमास्वातिजी के पक्ष में शहादतें देता है । वे इस प्रकार हैं।
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श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय तत्त्वार्थ सूत्र के उपर " गन्धहस्ति- महाभाष्य ' की रचना मानते हैं। यहां भाष्य के पूर्व में लगाया हुआ 99 महा शब्द उस महाभाष्य से प्राचीन “ ' लघु-भाष्य ” की रचना का स्पष्ट स्वीकार करता है । जो भाष्य था सो " छोटा " था, दुसरा बना सो " महाभाष्य " माना गया । दिगम्बर शास्त्रों के आधार से स्वामी समन्तभद्रजी ने महाभाष्य बनाया ऐसा विदित होता है और स्वामी समन्तभद्रजी के पूर्ववर्ती स्वयं उमास्वातिजी ने ही उस भाष्य को बनाया, इस प्रकार भी छोटे भाष्य की रचना स्वयं सिद्ध है । श्वेताम्बरीय व दिगम्बरीय महाभाष्य और टीकायें ये सभी इस स्वोपज्ञ (लघु) भाष्य को ही संतान-परंपरा हैं ।
वा० उमास्वातिजी ने प्रारंभ में ३१ कारिकाएं लिखी हैं जो तत्त्वार्थ का मूल और भाष्य का ठीक समन्वय करती हैं। जैसे कि
तत्त्वार्थाधिगमाख्यं बहु संग्रहं लघुग्रन्थम् ॥ वक्ष्यामि शिष्य हितमिम - महदवचनैकदेशस्य ॥ २२ ॥ महतोऽपि महाविषयस्य दुर्गम ग्रन्थभाष्यपारस्य |
कः शक्तः प्रत्यासं जिनवचनमहोदधेः कर्तुम् ॥ २३ ॥
अर्थ — मैं तीर्थंकर देव के वचन के एक विभाग के संग्रहरूप यह " तत्त्वार्थाधिगम"
नामक बहु अर्थवाला किन्तु लघु ग्रन्थ शिष्यहित के लिये बनाता हूं ||२२|| बडे से भी
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