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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
(१०६) राजगृह से चम्पा जाते पृष्ठचम्पा बीच में पडती थी ।
२७ आनन्द गाथापति ने गृहस्थ - धर्म स्वीकार किया उस समय और उसके बाद १५ वें वर्ष भगवान् वाणिज्य - ग्राम के दूतिपलास चैत्य में थे ।
કાર્તિક
(१८) कामदेवने गृहस्थ - धर्म अंगीकार किया उसके २० वें वर्ष भगवान् चम्पा नगरी में थे ।
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(१९) महाशतक के धर्मस्वीकार के बाद २० वें वर्ष भगवान् राजगृह में थे (२०) भगवान के केवलज्ञान के २४ वें वर्ष में प्रभास, २६ वें वर्ष में अचलभ्राता तथा मेतार्य, २८ वें वर्ष में अग्निभूति तथा वायुभूति और ३० वें वर्ष में व्यक्त, मंडित, मौर्यपुत्र तथा अकंपिक गणधर राजगृह के गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त हुए थे अतः उस समय भगवान् महावीर वहीं होंगे यह निश्चित है ।
११ उपसंहार
इस लेख में हमने भगवान् महावीर के केवलिजीवन कालीन कार्यों की सूची दी है और उसकी वास्तविकता समझाने के लिये विवरणपूर्वक भगवान के जीवन - काल की कुछ घटनाओं का भी उल्लेख किया है ।
यद्यपि प्रस्तुत लेख का मुख्य उद्देश महावीर - चरित्र विषयक हमारी योजना का दिग्दर्शन कराना ही है, फिर भी इसमें पूज्य पूर्वाचार्योंकृत महावीर - चरित्रों की समालोचना करनी पड़ी, इसका कारण यह है कि हमने प्रचलित महावीर - चरित्रों की परिपाटी को छोड कर नई शैली स्वीकार की । हमें यह नया मार्ग क्यों ग्रहण करना पडा इस प्रश्न का वास्तविक उत्तर पूर्वचरित्रों की असलियत खोले बिना दिया जाना कठिन था, कम से कम ऐसा किये बिना हमारी बात का औचित्य समझा जाना तो कठिन ही था, अतः इस अरुचिकर विषय को यहां स्थान देना पडा है, जिस के लिये हम उक्त चरित्रकार स्वर्गस्थ आचार्यों के क्षमा प्रार्थी हैं ।
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पाठकगण से हमारी प्रार्थना है कि वे इस योजना को ध्यान से पढ़ें और इसमें कुछ भी त्रुटि दृष्टिगत हो तो हमें उसकी सूचना करने का कष्ट उठायें और अपनी अमूल्य सलाह- सूचना से लेखक को अनुगृहीत करें ।