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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
કાર્તિક (२) श्रेणिक के मरणानन्तर मगध की राजधानी चम्पा में चली गई थी, और कोणिक ने अपने भाइयों की सहायता से वैशाली पर चढाई कर चेटक के साथ घोर संग्राम किया था जिस का नाम भगवती सूत्र में “ महाशिलाकंटक' लिखा है। गौशालक मंखलिपुत्र ने अपनी मृत्यु के समय जिन आठ चरिमों की प्ररूपणा की थी उनमें “ महाशिलाकंटक " सातवां चरिम बताया है । इस से सिद्ध है कि वैशाली का वह ऐतिहासिक युद्ध गोशालक की जीवित अवस्था में हो चुका था अथवा समाप्त होने को था ।
(३) गोशाल के साथ की तकरार के समय भगवान् महावीर अपने जीवन के १६ वर्ष शेष रहे बताते हैं इससे सिद्ध होता है कि गोशालकवाली घटना भगवान के केवलिजीवन के १४ वें वर्ष मार्गशीर्ष महीने में घटी थी।
(४) श्रेणिक की मृत्यु के बाद उनके स्मारकों को देख देख कर कोणिक का पितृ-मृत्यु दुःख से दुःखित रहना और इसी कारण राजधानी का वहांसे हटा कर चम्पा में ले जाना, हल्ल-विहल्ल के सुख-विहार से कोणिक की पट्टरानी की ईर्षा, बहुत समय तक उपेक्षा करने के बाद कोणिक का स्त्रीहठ के वश होना, हल्लविहल्ल से सेचनक हाथी का मांगना, हल्लविहल्ल का वैशाली जाना, कोणिक का चेटक के पास तीन बार दूत भेजने के अनन्तर युद्ध का निश्चय, कालादि दश भाइयों को अपनी २ सेनायें तैयार कर एकत्र होने की आज्ञा । ससैन्य सबका वैशाली पहुंचना और बहु कालपर्यन्त लडने के उपरान्त उसका ' महाशिलाकंटक युद्ध ' यह नाम प्रसिद्ध होना । इन सब कार्यों के संपन्न होने में कम से कम ४ वर्ष अवश्य लगे हेांगे ऐसा हमारा अनुमान है । यदि हमारा यह अनुमान गल्त न हो तो इसका अर्थ यह होता है कि राजा श्रेणिक ने भगवान् महावीर का केवलिजीवन दश वर्ष के लगभग देखा था, अधिक नहीं।
१० सामान्य हेतु संग्रह
उक्त ४ बातें हमारे केवलिविहारक्रम के मुख्य स्तंभ हैं, उन्हीं के आधार पर हमने भगवान के जीवन-चरित्र की अनेक घटनाओं को व्यवस्थित किया है, परन्तु केवल इन्हीं आधारों पर हमारी सम्पूर्ण इमारत निर्भर नहीं रह सकती, इसलिए, हमें अन्य भी अनेक आधारभूत सामान्य हेतुओं का सहारा लेना पड़ा है जो नीचे की तालिका से ज्ञात होंगे।
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