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મહાવીર-ચરિત્ર-મીમાંસા (३) 'ख' के लेखानुसार भगवान् ब्राह्मणकुण्ड से क्षत्रियकुण्ड होकर कौशाम्बी गये थे और वहां से फिर वाणिज्यग्राम जा कर आनन्द गाथापति को श्रमणापासक बनाया था। विदेह से वत्सदेश और वत्स से फिर विदेह में आने के बाद उनका वर्षावास वैशाली-वाणिज्यग्राम में होना ही अवसर प्राप्त था । इसी आधार पर तीसरा वर्षावास हमने वाणिज्यग्राम में बताया है।
(४) 'ख' और 'ग' दोनों के मत से भगवान् वाणिज्यग्राम से चम्पा की तरफ विचरे थे, और कामदेवगाथापति को श्रमणोपासक बनाया था, परन्तु हमारे विचार के अनुसार वे सीधे चम्पा न जा कर पहले राजगृह गये थे और वर्षावास वहीं व्यतीत करने के बाद चम्पा गये थे।
__ भगवतीसूत्र में भगवान के चम्पा से वीतभय जाकर उदायन राजा को दीक्षा देने का लेख है। उदायन अभयकुमार के पहले दीक्षित हो चुके थे, यही नहीं बल्के वे ११ आ-पाठी मुनि थे इन बातों पर ध्यान देने पर यही मानना पडता है कि उदायन की दीक्षा बहुत पहले की घटना है, अतः भगवान् इसी विहार-क्रम में चम्पा से वीतभय गये हेांगे, यह भी सिद्ध है । यदि बाणिज्यग्राम से चम्पा और चम्पा से वीतभय जाने की बात मानी जाय तो विहार बहुत लंबा हो जाता है । यों ही चम्पा से वीतभय १००० मील से भी अधिक दूर है, और वाणिज्यग्राम से चम्पा होकर वीतभय जाने में यह दूरी १२५ मील के लाभग और भी बढ़ जाती है, इस लिये राजगृह से चम्पागमन मानना ही उचित प्रतीत होता है।
(५) वीतभय से भगवान ने उसी वर्ष में अपने केन्द्रों की तरफ विहार किया था। और गर्मी के कारण स्थलभूमि में उनके श्रमग शिष्योंने भूख प्यास से बहुत कष्ट उठाया था। इससे ज्ञात होता है कि भगवान् ग्रीष्म काल के निकट आने पर वीतभय से निकले हेगे और वर्षाकाल लगने के पहले पहले वे अपने केन्द्र में पहुंच गये होंगे
और इस अतिदीर्घ विहार के बाद उन्होंने सब से निकट के केन्द्र वाणिज्य ग्राम में ही वर्षावास किया होगा यह कहने की शायद ही जरूरत होगी।
(६) 'ख' और 'ग' ने चम्पा से भगवान को बनारस और आलभिका की तरफ विहार करवाया है, परन्तु हम देख आये हैं कि चम्पा से भगवान् वीतभय गये थे और वहां से वाणिज्यगांव में वर्षाचातुर्मास्य किया था, इस दशा में चम्पा से सीधा बनारस. आलभिका आदि नगरों में जाकर चुलनीपिता आदि को प्रतिबोध देना असंभव ज्ञात होता है, अतः हमने यह कार्यक्रम वाणिज्यगांव के वर्षावास के बाद में रक्खा है ।
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