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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १५० आति श्रीन सत्य एकान्तदुःखवेदना आदि के संबन्ध में प्रश्नोत्तर । अग्निभूति और वायुभूति का निर्वाण । वर्षावास राजगृह में। ४२ बयालीसवां वर्ष (वि० पू० ४७१-४७०) (३०) वर्षाऋतु के बाद भी अधिक समय तक राजगृह में स्थिरता । कालोदायी के प्रश्न । अव्यक्त, मण्डिल, मौर्यपुत्र और अकम्पिक नामक गणधरों के निर्वाण । पावामध्यमा की तरफ विहार । पावा के राजा हस्तिपाल की रज्जुगसभा में वर्षावास । अन्तिम उपदेश । कार्तिक वदि ३० अमावस्या की रात्रि में निर्वाण और गौतम गणधर को केवलज्ञान-प्राप्ति । ८ विरारक्रम विवरण - भगवान् महावीर के केवलिजीवन संबन्धी जो सालवार विहारक्रम हमने ऊपर दिया है वह नीचे के विवरण से स्पष्ट होगा। (१) 'क' और 'ग' चरित्रों के लेखानुसार भगवान् मध्यमा से विहार कर राजगृह गये थे । जल्दा से जल्दी भगवान् मध्यमा से जेठ वदि में निकले होंगे और सामान्य विहारक्रम से चलते हुए वे ज्येष्ठ शुदि में राजगृह पहुंचे हेांगे। पहला ही समवसरण था और अनेक दीक्षायें भी हुई थीं यह देखते भगवान ने वहां पर्याप्त समय तक स्थिरता की होगी यह भी निश्चित है । इस दशा में पहले वर्ष का वर्षावास भी उन्हों ने राजगृह में ही किया होगा यह बात स्वतः सिद्ध हो जाती है । भगवान् महावीर के केवलि–अवस्था के वर्षावास संबन्धी केन्द्र तीन ही थे । १. राजगृह-नालन्दा, २. वैशाली-वाणिज्यग्राम और ३. मिथिला । इनमें से पिछले दो केन्द्र दूर थे, वर्षाकाल अति निकट था । श्रमणसंघ नया था, और समय प्रचण्ड ग्रीष्म का था । राजगृह जैसा पूर्व परिचित क्षेत्र था । इन सब बातों का विचार करने पर भी यही हृदयंगत होता है कि वह वर्षावास भगवान ने राजगृह में ही किया होगा इसमें कोई शंका नहीं। (२) 'ख' चरित्र भगवान का सीधा ब्राह्मणकुण्ड जाना बताता है, क्योंकि उस के मत से राजगृह के पासवाला आधुनिक ‘कुण्डलपुर' स्थान ही 'ब्राह्मणकुण्ड' था । परन्तु वास्तव में ब्राह्मणकुण्डपुर वैशाली के पास था जो राजगृह के बाद आता था । इस दशा में ब्राह्मणकुण्ड जाने का तात्पर्य हम यही समझते हैं कि राजगृह में वर्षावास पूरा होने के बाद वे विदेहभूमि में गये थे और ब्राह्मगकुण्ड, क्षत्रियकुण्ड आदि में ऋषभदत्त, जमालि आदि को दीक्षायें दी थीं । For Private And Personal Use Only
SR No.521516
Book TitleJain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages231
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size102 MB
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