SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૪૪ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ કાર્તિક चरित्रों के इस मतभेद का निराकरण करना विषम समस्या है। सूर्य प्रप्तिसूत्र के अन्तिम लेख से इतना तो ज्ञात होता है कि भगवान ने सूर्य प्रज्ञप्तिनिरूपित ज्योतिषविद्या की प्ररूपणा मिथिला के मणिनाग चैत्य में की थी, परन्तु दुष्पमाकाल की प्ररूपणा मिथिला में करने सम्बन्धी उल्लेख किसी सूत्र में देखा नहीं गया । (१४) 'ख' चरित्र के अनुसार मिथिला से बिहार कर महावीर पोतनपुर गये थे और वहां शंख, वीर, शिवभद्र प्रमुख राजाओं को निर्ग्रन्थ प्रवचन की दीक्षा दी थी, परन्तु 'ख' का यह लेख कहां तक सत्यता रखता है यह कहना कठिन है, प्रथम तो 'ग' के मत से पोतनपुर के राजा का नाम प्रसन्नचन्द्र था, दूसरा वीर, शिवभद्र प्रमुख अन्य देशों के राजा थे उनको पोतनपुर में दीक्षा लेने का क्या कारण हुआ इत्यादि शंका का किसी प्रकार समाधान नहीं होता । (१५) 'ख' चरित्र के अनुसार भगवान् महावीर पावा में जिस स्थान में चातुर्मास्य रहे थे वह राजा की 'शुल्कशाला' ( दानमण्डपिका ) थी, तब कुछ लेखकों के मत से वह मकान लेखकशाला ( पुरानी कचहरी ) थी । 'ग' चरित्र भगवान को फिर राजगृह ले जाता है और अभयकुमार तथा नन्दा की दीक्षा का उल्लेख करता है, इस प्रकार 'ग' के मत से अभयकुमार की दीक्षा राजगृह की लगभग सब से पिछली घटना है, इसके बाद वह फिर कभी राजगृह की तरफ भगवान का विहार होने का उल्लेख नहीं करता, परन्तु हम अनेक बार कह चुके हैं कि अभयकुमार की दीक्षा राजगृह की प्रारम्भिक घटनाओं में से एक है। इसका सब से पिछे उल्लेख करना घटनाओं का वास्तविक कालक्रम न जानने का ही परिणाम है । (१६) 'ग' के लेखानुसार श्रेणिक की मृत्यु के बाद भगवान् चम्पा की तरफ विहार करते हैं सो ठीक ही हैं, काली आदि १० श्रेणिक पत्नियों की दीक्षा का उल्लेख भी अवसर प्राप्त ही है परन्तु जाली मयालि आदि श्रेणिकपुत्रों और पद्म महापद्मादि श्रेणिकपौत्रों की दीक्षाओं का कहीं भी उल्लेख तक न करना इस प्रसंगवर्णन की एक कमी कही जा सकती है । (१७) कोणिक की मृत्यु और उदायी की राज्यप्राप्ति के बाद भगवान की विद्यमानतासूचक 'ग' का वर्णन असंगत है, क्यों कि इतिहास और कालगणना के हिसाब से कोणिक की जीवित अवस्था में ही भगवान् महावीर का निर्वाण हो चुका था । (१८) 'ग' चरित्र ने मण्डलिक पुण्यपाल का वृत्तान्त और पञ्चम काल का भविष्य निरूपण किस मौलिक ग्रन्थ के आधार पर किया है; इशका हमें पता नहीं लगा। For Private And Personal Use Only
SR No.521516
Book TitleJain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages231
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size102 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy