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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
अखण्डित रक्खा । इत्यादि प्रकार से दर्शनभद्र मुनि ने उसी भव में मोक्ष-लक्ष्मी को हस्तगत कर लिया।
. -(श्री उत्तराध्यायन सूत्र, १८) TV (८) महाराजा चण्डप्रद्युम्न-आप उज्जैन नगर के शासक थे। परमार्हत् महाराजा
चेटक की सात पुत्रियों में से एक सिवादेवी आपकी पट्टराज्ञी थी, और वह भगवान् महावीर की परम भक्त श्राविका थी। एक समय राजा चण्डप्र_म्न ने वीतभय पाटण से सुवर्णगुलिका दासी और भगवान् महावीर की मूर्ति गुप्त रूप से अपने यहां मंगवा ली। यह खबर जब राजा उदाई को हुई तो वह ससैन्य उज्जैन पर चढ आया । युद्ध के पश्चात् राजा चण्डप्रद्युम्न का पराजय कर, दासी और महावीर की मूर्ति वापिस ले ली । फिर भी सांवत्सरिक पर्व के पौषध व्रत को साथ में करने से स्वधर्मित्व के नाते उन्होंने उसे छोड दिया । और स्वयंने भगवान् महावीर की पूर्ण भक्ति करने में अपनी योग्यता दिखाई ।
-(श्री उत्तराध्यायन सूत्र, १८) (९) महाराजा दधिवाहन (बहान )----आप चम्पानगरी के नरेश और भगवान् महावीर के परम भक्त थे। जैनधर्म का प्रचार करने में आप सदैव प्रयत्नशील रहा करते थे । आपके एक पुत्री चन्दनबाला थी, जिसने बाल्यावस्था में श्री भगवान् महावीर के पास सर्व प्रथम दीक्षा ली थी, और ३६००० साध्वियों में सर्वोपरि थी। ---(कल्पसूत्र)
(१०) महाराजा युगबाहु-आप सुदर्शन नगर के अधीश और वीरशासन के परम सेवक थे। आपको पट्टराज्ञी तथा एक मात्र पुत्र ने भी जैन-दीक्षा स्वीकार की थी।
-(श्री उत्तराध्यायन सूत्र, अ० १०) (११) महाराजा बलभद्र-आप सुग्रीव नगर के शासक और भगवान् महावार के उत्कृष्ट भक्त थे । आपके एकाकी पुत्र मृगाकुमार ने भगवान महावीर की दीक्षा धारण कर जैन-धर्म के प्रचार के साथ अपना कल्याण भी किया था।
-(श्री उत्तराध्यायन सूत्र, अ० १९) (१२) महाराजा विजयसेन-आप पोलासपुर नगर के नरेश और भगवान् महावीर के पूर्ण भक्त थे, आपको पट्टमहिषी श्रीदेवी जैन-धर्मोपासिका थी । आपके एकाकी पुत्र ने बिलकुल बाल्यावस्था में भागवती जैन दीक्षा स्वीकार कर अपना जन्म मरण मिटा दिया । कुमार का नाम अइमत्ता था ।
-( श्री अन्तगढदशांग, सूत्र ) (१३) महाराजा नन्दिवर्धन--आप क्षत्रियकुण्ड नगर के नरश और भगवान् महावीर के वृद्ध भ्राता थे । आपके ही वंश में भगवान् महावीर जैसे त्रैलोक्य पावन प्रभु पैदा हुए, कि जिन्होंने समग्र विश्व का उपकार किया। भगवान् महावीर ने
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