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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८३ ભગવાન મહાવીર કે ભક્ત જૈન ભૂપતિ छमस्थावस्था में विहार किया तो सातवें वर्ष में आपके दर्शन के लिए नन्दिवर्धन भूपति भ्रमण करते हुए " मुंढस्थल " नामक नगर के पास मिले । वहां आपका दर्शन लाभ लिया, उसकी स्मृति के रक्षार्थ उस नरेश ने वहां एक मन्दिर बना दिया, जिसकी प्रतिष्ठा ' केशीश्रमणाचार्य ' से करवाई । उस मन्दिर के खण्डहर एवं शिलालेख अद्यावधि भी विद्यमान हैं। - ( श्री कल्पसूत्रादि) (१४) महाराजाधिराज संतानीक---आप कौशाम्बी नगरी के प्रजापालक और भगवान महावीर के परम भक्त थे । महाराजा चेटक की सात पुत्रियों में से एक आपकी प्रधान महिषी थी, जिसका नाम मृगावतो था, जो जैन-धर्म की परमोपासिका तथा वीरभक्ति-परायणा थी । आपके जयन्ती नामको एक बहिन भी थी जिसने भगवान् महावीर को कई प्रश्न पूछे और अन्त में जैन-धर्म की दीक्षा ग्रहण की। महाराजा संतानीक के उत्तराधिकारी महाराजा उदाई भी तीर्थकर महावीर के पूरे भक्त थे । ----(श्री भगवतीसूत्र, श. १२-१) (१५) महाराजा सेत-आप अमलकंपा नगर के शासक और चरम तीर्थङ्कर के पूर्ण भक्त थे । भगवान् महावीर के आगमन-समय आपने बडे उत्साहपूर्वक स्वागत जुलूस बनाया था । सुरियाभादि देव सबसे पहिले इसी नगर में भगवान् को वन्दना करने को आए थे और बत्तीस तरह के नाटकादि से अपनी पूर्ण भक्ति बताई थी। __-( श्री राजप्रश्नी सूत्र) (१६) महाराजा प्रदेशी -- आप श्वेताम्बिका नगरी के नास्तिक शिरोमणि, अधर्म की ध्वजारूप, और साधुओं के कट्टर विरोधी राजा थे। पर आपके प्रधान चित्र सारथी के उद्योग से, और आचार्य केशिश्रमण के प्रधान उपदेश से आप भी भगवान् महावीर के परम भक्त बन गए। यहां तक कि आपने समग्र राज्य की आय का चौथा हिस्सा परमार्थ के कार्य में लगादेने की प्रतिज्ञा करली थी। इतना ही नहीं पर इस वीर भूपति ने यावज्जीवन तक छठ छठ (दो दो दिन ) की तपश्चर्या कर अन्त में इस नाशवान् शरीर का त्याग कर देवगति में सुरियाभदेवत्व को प्राप्त किया था । --( श्री राजप्रश्नी सूत्र ) (१७) महाराजा शिव-- आप हस्तिनापुर के नरेश थे। आपने तापस संन्याश दीक्षा ली थी, और तपश्चर्या करते हुए ही आपको विभंग ज्ञान हुआ था । उसके For Private And Personal Use Only
SR No.521516
Book TitleJain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages231
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size102 MB
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