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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
ભાદ્રપદ हुए ग्रंथ कितने हैं उसका निर्णय होना मुश्किल है। आपके नाम का कुन्दकुन्दश्रावकाचार उपलब्ध है जिसका विशेष परिचय ग्रन्थ-विभाग में दिया जायगा । इसकी जांच कर के पं० जुगलकिशोर मुख्तार भ्रमस्फोट करते हैं। वह नीम्न प्रकार है
" इससे निःसंदेह कहना पड़ता है कि यह ग्रंथ श्वेताम्बर संप्रदाय का ही है। दिगम्बरों का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है । और श्वेतांबर संप्रदाय का भी यह कोई सिद्धान्त ग्रन्थ नहीं है, बल्कि मात्र विवेक-विलास है, जो कि ए मन्त्रिसुत की प्रसन्नता के लिये बनाया गया था।
विवेकविलास की संधियाँ और उसके उपर्युल्लिखित दो पद्यों ( ३-९ ) में कुछ ग्रंथनामादिक का परिवर्तन करके ऐसी किसी व्यक्तिने, जिसे इतना भी ज्ञान नहीं था कि, दिगम्बर और श्वेताम्बर द्वारा माने हुए अठारह दोषो में कितना भेद है, विवेकविलास का नाम 'कुन्दकुन्द-श्रावकाचार' रक्खा है । और इस तरह इस नकली श्रावकाचार के द्वारा अपने किसी विशेष प्रयोजन को सिद्ध करने की चेष्टा की है । अस्तु ।
__इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जिस व्यक्ति ने यह परिवर्तन कार्य किया है वह बडाही धूर्त और दिगम्बर जैन समाज का शत्रु था । परिवर्तन का यह कार्य कब और कहां पर हुआ है इसका मुझे अभीतक ठीक निश्चय नहीं हुआ। परन्तु, जहांतक मैं समझता हूं, इस परिवर्तन को कुछ ज्यादह समय नहीं हुआ है और इसका विधाता जयपुर नगर है।
जिस भण्डार में यह ग्रंथ मौजूद हों उस ग्रन्थ पर लिख दिया जाय कि “ यह ग्रन्थ भगवद् कुन्दकुन्द स्वामी का बनाया हुआ नहीं है । वल्कि वास्तव में यह श्वेताम्बर जैनियों का विवेकविलास ग्रन्थ है। किसी धूर्त ने ग्नन्थ की संधियों और तीमर व नौवें पद्य में ग्रन्थनामादि का परिवर्तन करके इसका नाम कुन्दकुन्द्र -श्रावकाचार रख दिया है"।
पं० मुख्तारजीने उपर के निवेदन से एक सत्य स्वरूप का आविष्कार किया है । इसी से दि०ग्रन्थकारांकी नीति का ठोक ख्याल आ जाता है।
___ सारांश यह है कि आ० कुन्दकुन्द ने उपलब्ध जैन आगम से कई शास्त्र बनाये और भगवद् सीमन्धर स्वामी के नाम पर चढा दिये । और इसी तरह किसी अन्य दिगम्बर विद्वान ने कई ग्रन्थ बनवाये और उनको आ० कुन्दकुन्द के नाम पर चढा दिये । इससे दिगम्बर ग्रंथकारों की ग्रंथनिर्माण की नीति भलीभांती स्पष्ट होती है।
( अपूर्ण)
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