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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3 ૫૮ શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ ભાદ્રપદ ८. आप नन्दीगण के-देशी गण के आचार्य हैं [ श्र0 बे० शि० नं० ४२, ४३, ४७, ५०; स्वामीसमंतभद्र, पृष्ठ १५, १३६] नन्दी गण के संस्थापक आचार्य अर्हबली अथवा आ० अकलंक हैं (श्र० बे० शि० नं० १०८, श्लोक २१) आ० अकलंक करीब विक्रम की ८ वीं शताब्दी के आचार्य हैं । और आ० अर्हबली का समयकाल वी. नि. ७०० के बाद का है ---(विद्वद्रत्नमाला पृष्ठ-५) ९. श्र० बे० शि० नं० १०८ के अनुसार कुन्दकुन्दाचार्य विक्रम की छठी शताब्दी के आचार्य हैं। १०. प्रतिबोधचिन्तामणि में कुन्दकुन्दाचार्य का समय वि. सं. ७५३ दिया है। ११. बाबू जुगलकिशोर मुख्तार लिखते हैं कि आ० कुन्दकुन्द का संगयकाल विक्रम की पहली या तीसरी शताब्दी है । १२. न्यायशास्त्री, दि० पं० गजाधरजी का मत है कि आपका जन्म वि. सं. २१३ से पहले मानना गलत है, अतः आपका सत्ता समय शिवमृगेशवर्म का ही समय यानी शक सं० ४५० (वि. सं. ५८५) है। _ --(सतातन जैन ग्रंथमाला मुद्रित कुन्दकुन्दकृत 'समयसारप्रामृत' की प्रस्तावना) १३. दि० पं० पन्नालालजी सोनी लिखते हैं कि-अत एव कुन्दकुन्द का समय उनसे १५० वर्ष पूर्व अर्थात् शकसंवत् ४५० (वि० सं० ५८५) ही सिद्ध है। -(माणिक्यचंद्र दि० जैन ग्रंथमाला प्रकाशित ग्रं० १७, गटप्राभूतादिसंग्रहभूमिका, पृष्ट-५) कुन्दकुन्दाचार्य दिगम्बर समाज के प्रधान आचार्य हैं, मूलसंध के स्थापक हैं और दिगम्बर मुनि के लिये आवश्यक गृद्धपिच्छिका इत्यादि बाह्य लिंग के व्यवस्थापक हैं इतना ही नहीं किन्तु वे नवीन मार्ग के प्रकाशक हैं एवं दिगम्बरसम्मत शास्त्रों के सर्व प्रथम प्रणेता हैं। भगवान् महावीर से जो मत चल रहा था उसमें आ० कुन्दकुन्द ने दिव्य ज्ञान पाकर क्रांति की और नवीन पथ बताया। लोग उस राह में चलने लगे। “मूलसंध" उस पथ में चलनेवालों का ही नामांतर है। आचार्य देवसेन इसके लिये फरमाते हैं कि आ० पानंदी ने भगवद् सीमंधर स्वामी से दिव्य ज्ञान प्राप्त कर नया मार्ग प्रकाशा. ----श्रीयुत् प्रेमीजी संपादित “दर्शनसार," गाथा ४३, प्रथम संस्करण For Private And Personal Use Only
SR No.521514
Book TitleJain Satyaprakash 1936 08 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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