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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें? लेंग्वक---मुनिराज श्री दर्शनविजयजी (गतांक से क्रमशः) प्रकरण ७-कुन्दकुन्दाचार्य (चाल) (४) आ० कुन्दकुन्द के समय के बारे में भिन्न भिन्न दिगंवरीय मान्यताएं १. आ० कुन्दकुन्द मौर्य चन्द्रगुप्त के शिष्य हैं, अतः आपका समय वीरनिर्वाण से दूसरी शताब्दि का है। २. आप आ० द्वि० भद्रबाहु के शिष्य हैं । आ०वि० भद्रबाहु का स्वर्गवास वीर नि० सं. ६८३ (वि. सं. २१३) में हुआ । डॉ. ल्युमन के मत के अनुसार उनका स्वर्गवास वि. सं. २३० में और ग्रो. हीरालालजी के मतानुसार वि. सं. ४ में हुआ। ३. आप आ० द्वि० भद्रबाहु के शिष्य के शिष्य चन्द्रगुप्त के शिष्य हैं, अतः आपका समय विक्रम की तीसरी शताब्दी का है। ४. नंदीसंघ की पट्टावली के अनुसार आपका समय विक्रम की पहली या दूसरी शताब्दी का है। ५. आप आचार्य भूतबली के शिष्य हैं । इस प्रकार आपका समय संदिग्ध दशामें है , पर श्वेतांबरीय मान्यता के अनुसार यदि शिवभूतिजी और भूतबलीजी एक ही आचार्य हों तो आपका समय विक्रम की दूसरी शताब्दी का दूसरा या तीसरा चरण है। ६. श्र० बे० शि० नं० ५५, ४९२ और स्वा० स० भ० पृष्ठ-१७९ के अनुसार आप मूलसंध के संस्थापक व प्रधान आचार्य हैं। पं० नाथुरामजी प्रेमीजी का मत है कि- “ मूलसंघ नाम सातवीं आठवीं शताब्दी से पहिले के कोइ लेख में प्रतीत नहीं होता, माने वो अर्वाचीन है" -(ता० २१-१०-३० हरिवंशपुराग-प्रस्तावना) ७. कौण्डकुन्द नाम कनडी भाषा का है, और लिपी का प्रारम्भकाल विक्रम की ६ या ७ वी शताब्दी है। ---(श्वे० म० स० दि० पृष्ठ ९८ से १००) For Private And Personal Use Only
SR No.521514
Book TitleJain Satyaprakash 1936 08 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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