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दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें? लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी
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(गतांकसे क्रमशः) प्रकरण ५-आचार्य धरसेनजी व भूतबलीजी हम उपरके प्रकरणोंमें बता चुके हैं शेष रहा था, और उस समय न कोई पूर्वकि-दिगम्बर अन्धकारोंके कथनानुसार वित् था, न कोई एकादशांगवित् ही। हां, दिगम्बर मान्य आगमोंका सर्वथा अभाव उस समयमें जैन इतिहासके अनुसार हो गया। अतः उनको नये ही शास्त्र पूर्वधर विचरते थे, और एकादशांग वेदो भी बनाना जरुरी था, और उन्होंने उसके लिए विद्यमान थे। उन पूर्वधारीओंमें आचार्य कार्यारंभ कर दिया।
धरसेनजी भी एक थे। ___ नये नये, दिगम्बर सम्मत, शास्त्र कैसे दिगम्बर ग्रन्थों में उल्लेख है किबनें ?-उसका क्रमिक इतिहास ब्रह्म हेमचंद्र- आचार्य धरसेनजी दो पूर्वके ज्ञाता थे, महाकृत "सुअखंघो", आचार्य इन्द्रनन्दीकृत ध्यानी थे, गिरनार पहाडकी चन्द्रगुफामें " श्रुतोवतार" और श्रीधर विरचित "श्रुता- चारित्र-मग्न होकर रहेते थे। प्रज्ञावान् दो वतार" में मिलता है। उनमें लिखा है कि- साधुने बेगाकतटसे यहां आकर आचार्य
आचार्य अहंदबलिजीने चारों ओर के पासमें “महाकर्म प्राभृत" वगैरहका १०० योजन प्रमाण क्षेत्रमें विचरते जैन-- अध्ययन शुरु किया। आए हुए ये दो साधुओंको एकत्रित करके युगप्रतिक्रमण साधुजी कोन थे. उनका क्या नाम था ? (आठवा प्रतिक्रमण) किया करवाया। वे किसके शिष्य थे?--ऐसी ऐतिहासिक उन्हींके शिष्य आचार्य माघनन्दीजी हुए बातोंका किसी प्रकारका भी पता नहीं
है। देवांने उन दोनों साधुजीका, गिर___ इन दोनों आचार्योंके शासनकालमें नारको पहाडीमें हो, १ पुष्पदन्त और २ सिर्फ प्रथमांग-आचारांग सूत्रका हो ज्ञान भूतवलि नाम रक्खा । दोनेांने अषाढ़
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