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દિગંબર શાસ્ત્ર કૈસે બનેં?
૩૪૯ कृष्ण ११ के दिन अध्ययन-पढना-समाप्त निर्विवाद दिगम्बर जैनधर्मका सबसे किया। दुसरे ही दिन विहार करके वे ९ प्रथम बना ग्रन्थ “पखंडशास्त्र" ही है। दिनोंमें "कुरीश्वर" जा पहूंचे, और वहां ही इस शास्त्रमें ६ खंर हैं-१ जीवस्थान, २ चातुर्मास-अवस्थान किया।
क्षुल्लकबन्ध, ३ बन्धस्वामित्व, ४ भावखंड,
५ वेदनाखंड ओर ६ महाबन्धखंड । पहले बादमें गिरनारजीमें आचार्य धरसेनजी
पांच खंड मिलकर, ६००० श्लोक प्रमाण का स्वर्गवास हुआ।
हैं, और छठा महाबन्धखंड ३०००० अब पुष्पदन्त और भूतबलिजीने महा- श्लोक प्रमाण था, बडा था। यहां यह लिखना भारत--बडा-काम उठाया, एक दुसरेके मुनासिफ होगा कि छठे खंड पर भी कई सहकारसे नया कर्मप्राभृत षोडशास्त्र संस्कार हो चुके हैं, जो हम आचार्य वीरबनाया । एप्पदन्तजीने ग्रन्थनिर्माणकी सेनके प्रकरणमें बतायेंगे। कर्मप्राभूत योजना की--मार्ग सूचित किया, और आप- शास्त्रकी काटछांट करके शक संवत् ७३८ की ही इच्छानुसार भूतबलिजीने शास्त्रको में तैयार किया हआ “धवलग्रन्थ" आज रचना की। शास्त्र समाप्त होने के पश्चात् कर्णाटकके दिगम्बर शास्त्र-भंडारमें उपलब्ध भूतबलिजीने श्री संघको उपस्थितिमें है, जो आज कर्मप्राभूतके प्रतिनिधिरूप भाद्रपद शुक्ला ५ के दिन इस शास्त्रको है। "धवलप्रन्थ" के निर्माणका इतिहास लोपीबद्ध किया। उसी समयसे दिगम्बर हम आगे चलकर बताएंगे । समाजमें भाद्रपद शुक्ला ५ का दिवस इस पखंडशास्त्र-सृष्टिको ही प्रधान " श्रुतपंचमी” के नामसे त्यौहारका दिन मानकर दिगम्बर जैन-साहित्यकी नींव डाली माना जाता है४२ ।
गई।
(क्रमशः)
४२. जैनसमाज कार्तिक शुक्ला ५ के दिनको "ज्ञानपंचमी" का त्यौहार मानता है, इस दिनका दूसरा नाम है “सौभाग्यपंचमी"। इस दिन जैन आगमांकी-जैन शास्त्रोंकी प्रदर्शनी, भक्ति, पूजा एवं उपासना की जाती है और ज्ञानकी आराधनाके हेतु तपस्या की जाती है।
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