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श्रीमान् सन्तबालजीसे कुछ प्रश्न लेखक-मुनिराज श्री ज्ञानसुंदरजी महाराज
Mantmanent HARTHRILANGHI1100
श्रीमन् !
प्रचलित मूर्तिपूजाका विरोध किया, आपने " जैन प्रकाश" नामक पत्र अर्थात् लौकाशाहकी यह मान्यता थी में "धर्मप्राण लोकाशाह" नामकी जो कि "जैनागमों एवं ३२ सूत्रोंमें मूर्तिलेखमाला प्रकाशित कराई है, उसमें पूजाका उल्लेख नहीं है. इत्यादि।" पर भगवान् महावीरसे लौकाशाह, और आपने यह नहीं बतलाया कि भूतिपूजा लौकाशाहसे आजतकके स्थानकवासी कबसे शुरु हुई, किसने चलाई, और समाजका इतिहास (उपन्यास) लिखकर इस प्रवृत्तिमें उनका क्या हेतु था?। स्थानकवासी समाजको विश्वास दिलाया इससे तो यही सिद्ध होता है कि-महाहै कि लौकाशाहका चलाया हुआ मत वीर प्रभुके समय मूर्तिपूजा विद्यमान थी सत्य है। अब किसी स्थानकवासी साधु और महावीरसे २००० वर्ष बाद तक भी या श्रावकको स्थानकवासो मतका त्या- अविच्छिन्न रूपसे चली आ रही थी, और गकरमूर्ति-उपासक बननेकी आवश्यकता इन २००० वर्षों में अनेक पृर्वधर, श्रुतनहीं है, इत्यादि-परन्तु आपकी इस केवली, एवं बड़े धुरंधर आचाोंने इस सत्यतापर तो तभी प्रकाश पडेगा जब प्रथाका खूब पोषण किया. बीच बीच कि-कोइ निष्पक्ष दृष्टिसे आपकी लेखमाला में जैन-शासनमें कई भेद भी हुए, जैसे पर योग्य समीक्षा करेगा। पर आज तो श्वेताम्बर, दिगम्बर। और अनेकानेक मैं आपकी लेखमालामें रही हुई कतिपय गच्छ भी पैदा हुए। पर मूर्तिपूजाके न्यूनताके विषयमें ही प्रश्न करनेको यह विषयमें तो सबका एक ही मत था । लेख लिख रहा हूँ कि आपने अपनी कारण, मूर्तिपूजा जनकल्याण के लिए लेखमालामें साधारण बातोंको स्थान देते सर्व व्यापिनी थी, पर वीरात् २००० हए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातोंको क्यों वर्षोंमें केवल लोकाशाहने ही इसका नहीं स्थान दिया, और इस उपयुक्त विरोध क्यों किया। इतिहासविषयको कैसे भूल गये ? (२) लौकाशाहकी परम्परामें जो जैसेकि
साधु (यति) हुए उन्होंने अपने उपाश्रयमें (१) "भगवान महावीरके बाद २००० जैनमूर्तियोंको स्थापना कर सेवा पूजा घाँसे लौकाशाह हुआ, और उसने प्रारंभ को जो आज तक भी विद्यमान
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