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સમીક્ષાભ્રમાવિષ્કરણ
सिवाय धर्मनी प्रभावना थती नथी । आवी रीते दिगंबर - शास्त्र बतावे के जुओ-दिगम्बरशास्त्र उत्तरपुराणना वर्धमानपुराणमां
नास्ति सावद्यलेशेन, विना धर्म
प्रभावना ।
भावार्थ-प - पापना अंश सिवाय धर्मनी प्रभावना होइ शकती नथी । उपर्युक्त दृष्टान्तमां शासन - प्रभावनादि समायां छे तेनुं सहायक चर्म बने है ।
कारण
अथवा कोई मुनिमहात्मा विहारक्रमथी चाल्या आवे छे। रस्तामां पराना अंगुठा पर खत घा लाग्यो छे, जेम तेम करोने रस्ताना गाममां आवी गया;
या संयमनां घातक अनेक साधनो छे: आगल गया सिवाय छुटकारो नथी; चालवाने माटे पगना अंगुठापर चामडानी खोळी चडाववी आवश्यक छे: न चडावे तो विहार करी शकाय तेम नथी: कदाच साहस करीने करवामां आवे तो लडथडीया आववाथी रस्तामां पडी जवानो भय रहे छेः आवा प्रसङ्गोमा पण चर्म संयम अने संयमीनुं सहायक बने छे ।
सारांश एछे के चर्म संयमनुं उपकरण ज नथी एवं जे लेखकनुं लखवुं ते युक्त नथी । कारण के - दशाविशेषमां उपकरण बनी शके । कायमनी प्रवृत्तिने माटे नथी एम जो कहेवामां आवतुं होय तो अमारे इष्ट ज छे । अमो पण कायमने माटे चर्मने उपकरण मानता ज नथी । एटला माटे तो शास्त्रकारोए तेनुं वर्णन बतावेल है ।
२. बीजी बाबतमां सूचववामां आव्युं जे संयमोपकरण राखवाथी परिग्रहनो
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दोष लागतो नथी । आ बाबतमां लेख' कने पुछवामां आवे छे के आनो शो अर्थ करो छो ? शुं संयमोपकरण राखवामां परिग्रहनो दोष नथो, अने अन्योपकरण राखत्रामां परिग्रहदोष छे एम कहेवा मांगो छ ? अथवा जेम अन्योतेम संयमोपकरण वापरवामां पण परिपकरण वापरवामां परिग्रहनो दोष नथी ग्रहनो दोष नथी एम कहेवा मागो छो आ बेमाथी एक पण वात युक्त नथी, कारण - ज्ञानोपकरण पुस्तक दिगम्बर मुनिओए स्वीकारेल छे से पहेला अर्थ मां परिग्रह थइ जशे । बोजा अर्थमां संयमोपकरण सिवायना बोजा तमाम उपकरणमां परिग्रहनो दोष नथी एम दिगम्बरो मानो शकशे नहि ।
कदाच एम कहेवामां आवे केसंयमोपकरणने राखवामां परिग्रहनो दोष लागतो नथो एटलुं ज अमारुं कहेवु छे, बीजा उपकरणनो अमो अहींया चर्चा करता नथी । आ बाबतमां पण लेखकने पुछवामां आवे छे के आ वात दिगम्बर मतप्रमाणे कहो छो के श्वेताम्बर मत प्रमाणे ? दिगम्बर मत प्रमाणे जो कहेता हो तो, वस्त्र पात्र विगेरे पण संयमीना संयम मार्गमां सहायक होवाथी संपमोपकरण कहेवाशे अने तेने राखवामां परिग्रहनो दोष नथी तेम मानवुं पडशे । अने आ मानवा जतां दिगम्बर शब्दने बाजुपर सुकवो पडशे । कदाच एम कहेवामां आवे केश्वेताम्बर मत प्रमाणे कहीए छीए, तो एक वात श्वेताम्बरनी अनुकूलता पडे त्यां मानवी अने बोजी न मानवी ए क्यांनो न्याय कहेवाय !
(अपूर्ण)
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