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શ્રી જૈન સત્યપ્રકાશ सारांश-२ चमडा अपने पास रख- वशात् कोपायमान थइने आ मुनिमहानेसे साधुको परिग्रहका दोष भी लगता त्माने हुकम कर्यो के अमुक टाइममां है, क्यों कि-चमडा संयमका उपकरण ज मारो देश छोडीने चाल्या जाव, नहि, उसका ग्रहण शरीरको मुख पहुं नहितर जानथी मारी नाखीश। अथवा चानेके लिये, उसमें ममत्वभावसे, तो देशान्तरमा कोइ मोटो वादी आवेल होता है।
छे, तेनी सामे त्यां कोइ टक्कर झीली आमाथी नोचे प्रमाणे चार बाबतो __ शके तेम नथी। आ मुनिमहात्मानी त्यां स्पष्ट तरी आवे छे।
तात्कालिक जरुरत छे । न जाय तो जिन१ चामडं चारित्रनुं उपकरण नथी। शासनना हीलना अने लोको धर्मपतित २ संयमोपकरण राखवाथी परिग्रहनो
थइ जाय तेम छे, आ रीते मानील्यो के दोष लागतो नथी।
बेमांथी कोइ कारण उपस्थित थयेल छ । .३ चामडुं शरीरने सुख पहोंचाडवा
आवा प्रसङ्गमा मुनिमहात्माए शु करवू? माटे छे ।
पगनां तळोयानी उपर्युक्त दशाने लइने ४ शरीरने सुख आपनारी वस्तु
खुल्ला पगे थोडा समयमां ते राजानी हदनी ममत्वथो ग्रहण कराय छ।
बहारना भागमां; अथवा वादी ज्यां छे आ चारमाथी प्रथम बाबतने अङ्गे ते स्थलमां पहोंची शके तेम नथी। हवे लेखकने पुछवामां आवे छे के-संयमो- जो न जाय तो प्रथम प्रसङ्गमां राजाथी पकरण एटले शु? संयम मार्गमां सहाय- मृत्यु पाछल शासननां अव्यवस्थादिक कारी जे वस्तु ते संयमोपकरण कहेवामां छे। अने बीजा प्रसङ्गमां परवादिनो जय आवे छे आम जो कहेता हो तो चर्म अने लोकोतुं धर्मथी पतन विगेरे छ। पण संयमोपकरण थइ जशे, कारणके- आ बन्ने जातना दोषमांथो बचवानो दशाविशेषमां चर्म-ग्रहण बतावेल छे एक रस्तो छ के चामडानां तळीयां जो हमेश माटे तो नहि ज । दशाविशेषमा पो बाँधी ले तो धार्या टाइमे ते ते एटले शुं ? के जे दशामां चमेथी संय- स्थले पहोंची शके तेम छे अने संयममादिगुणने सहायता मलतो होय ते । गुणधारो श्रतनिधि मुनिनु रक्षण, शासअवस्थामां।
ननो व्यवस्था, परवादीनो जय अने कदाच एम कहेवामां आवे के-कोइ शासन-प्रभावना विगेरे लाभो थाय के पण अवस्थामां चर्म संयमादिगुणर्नु
आवा प्रसङ्गे चर्म उपयोगमां लेबु ते साहायक बनतुं ज नथी तो ए वात पण महान् लाभदायक छ, संयमादिगुणर्नु युक्त नथी। कारणके अवस्था विशेषमां साहाय्यक छे एम कहेवू पडशे. सहायक बनी शके छे। जुओ-कोइ परवादीयोना जयने माटे दिगम्बर शासननायक श्रुतनिधि मुनिमहात्मा मुनिओने तेमना शास्त्रकारे चोमासामा अमुक नगरोमां पधार्या छ। आ मुनि- जीवाकुल भूमि होवा छतां पण भार महात्माना पगनां तळोयां घणां सुकु. दइने विहारो बताव्या छे। शासनमाळ छे अथवा तो एमां चांदां पड्यां प्रभावना माटे सावधांश वोरवा पडे तेनी के। आ देशना राजाए कोइ निमित्त- पण चिन्ता नहि कारणके-सावद्यना अंश
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