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સમીક્ષાશ્રમાવિષ્કરણ
૧૩૯ कदाच एम कहेवामां आवे के चर्म वापरवामां पण हिंसानो दोष लागशे, जे वखते ग्रहण करे छे ते वखते शुष्क केमके-माखणमां त्रस जीवोनी हिंसा शुद्ध अने साफ थयेल होवाथी भले थाय छ। तथा त्रस जीवनी हिंसावाळीमां प्रस जीवनी उत्पत्ति के नाश न होय हिंसा मानवी अने एकेन्द्रिय जीवनी परंतु ते जीव ज्यारे कलेवरमांथी निकली हिंसावाळीमां न मानवी आ वात तो गयो, त्यारथी मांडीने ते चर्म शुष्क मत्तप्रलाप सरखी छे। युक्ति तो एज थयुं त्यांसुधीना कालमां जीवनी कबुल करशे के-जो त्रस जीवनी हिंसाउत्पत्ति अने विनाश थयां हशे, आवो वाळामां हिंसा, तो एकेन्द्रियनी हिंसारीते भूतकालमां प्रस जीवनी हिंसा वाळामां पण हिंसा, अने जो तेमां न थयेल होवाथी वर्तमान कालमां भले होय तो आमां पण नहि। हिंसा न होय तो पण भूतकालीन हिंसाथी हिंसा कहीशुं । आ वात पण व्याजबी नथी, उत्सर्गमार्गथी तो चर्मनो त्याग कारण के-आवी रोते जो हिंसा गणवामां करवो ते मुनिनो धर्म छे परंतु कोई आवे तो तो मुनिओने आहारनो पण प्रबल कारण विशेषे शुष्क शुद्ध अने त्याग करवो पडशे, कारण के-तेमां पण साफ करेला चर्मने कदाच लेवामां आवे प्रथम हिंसा थयेल छ । सारांश ए छे तो पण हिंसानो दोष कोइ पण रीते के-त्रस जीवनी हिंसाथी ज चर्म प्राप्त लागु पडी शकतो नथी। कारण केथाय छे आq जे लेखकनुं लखाण छे ते “प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा" पीलकुल भुल भरेलुं छे ।।
प्रमादयोगथी प्राणनो जे वियोग करवों
तेनुं नाम हिंसा कहेवाय छे । मुनिओ हवे आपणे बीजी वातना विचार मायोगी मन वचन कायाप करीने. पर आवीए । बीजी वातमा एम जणाव
चर्मन माटे त्रस जीवना प्राणनो वियोग वामां आव्यु हतु के-"जेमा हिंसा थयेल
करता करावता के अनुमोदता नथो । होय ते वस्तु राखवाथो हिसानो दोष माटे हिंसा कोइ पण रीते घटी शकतो लागे छे'। आना जवाबमा जणाववानुं
नथी। जे-भूतकालमां जेमां हिंसा थइ होय तेने वर्तमान कालमां पण वापरवाथी जो
कदाच एम कहेवार्मा आवे के-आवी हिंसानो दोष लागतो होय तो डाळ वस्तु पासे राखवामां हिंसानी अनुमोशाक विगेरे वापरवामां पण हिंसानो दनानो दोष लागशे। आ वात पण युक्त दोष लागशे, कारणके-तेमां प्रथम नथी, कारण के-पासे राखवाथो जो धान्यादिकना जीवनी हिंसा थयेलो हती। हिंसानो अनुमतिनो दोष गणघामां आवे
तो भूतकालमा जेमा हिंसा थयेल छ कदाच एम कहेवामां आवे के-त्रस एवा आहारादिकने वापरवामां पण ते जीवनी जेमा प्रथम हिंसा थइ गयेल दोष लागु पडशे। सारांश ए छे के होय ते वर्तमान कालमां वापरवाथो पण जेमां हिंसा थयेल होय तेने वापरवामां किसानो दोष लागे छ । आ वात पण हिंसा लागे छे आq लेखकनुं जे कथन याजबी नथी, कारण के घी विगेरे ते युक्तिविकल छ।
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