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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ आवे छे के-ढोर विगेरे पञ्चेन्द्रिय पोतानी मोर पिच्छो राखवानां शास्त्रीय लखाणोने मेले मरे छे के नहि ? नथी मरता एम कल्पित मानवां पडशे । जो कहेशो तो ते तो प्रत्यक्ष विरुद्ध छे. कदाच लेखक एम कहे के-चामडं मरे छे एम कहेशो तो शुं तेनुं चामडुं त्रस जीवनी हिंसाथो ज प्राप्त थाय छे काममां आवी शके के नहि ? न आवी
एम जे जणाववामां आवेल छे, तेनो अर्थ शके एम जो कहेता हा तो ए वात
एवो छ के-जे जीवनुं चामडुं छे तेनाथी प्रत्यक्ष विरुद्ध छे । काममां आवी शके
भिन्न जे त्रस जीवो तेनी हिंसाथी चामडं एम जो कहेता हो तो सिद्ध थयुंके
प्राप्त थाय छे । आ वात पण व्याजबी त्रस जीवनी हिसा सिवाय पण चामडु नथी। कारण के-तज्जीवना वियोग सिवाय प्रास थइ शके छे। अने उपयोगमा
अन्य त्रस जीवोनी हिंसाथी चामडं मळी आवी शके आटलुं कहेता हो तो तमारा
शके ज नहि ए वात प्रत्यक्षसिद्ध छ। पूर्ववचनने अनिच्छाए पण पार्छ खची लेवू पडशे।
कदाच एम कहेवामां आवे के-जे
जीवन चामडुं छे तेना कलेवरनी निश्राए कदाच एम कहेवामां आवे के- रहेला अन्य त्रस जीवनी हिंसा थयेल चामडाने माटे ढोर विगेरेने मारवानो होय छे. माटे ते चामडामां पण त्रस सम्भव छ, तेथी सम्भवनी अपेक्षाए जोवनी हिंसा गणाय। आ वात पण अमोए त्रस जीधनी हिंसा कहेली छे। व्याजबी नथी, कारण के-निश्रित जीवनी आ वात पण व्याजबी नथी, केमके जेमां हिंसा पण जो आधारमा गणवामां आवे हिंसानो सम्भव होय एने लेवामां पण तो, वनस्पति विगेरेमा पण निश्रित हिंसा गणाती होय तो तमारा दिगम्बर जीवनी हिंसा थाय छे । अने ते हिंसा मुनिओ जे मोर पिच्छी राखे छे तेमां शाक भाजीमां पण गणावाथो शाक पण मोरनी हिंसानो संभव छे, कारण के भाजीमां पण हिंसाना दोष लागशे। पिच्छाने माटे कोह हिंसक लोको मोरने मारी पण नांखे छ।
कदाच एम कहेवामां आवे के-पञ्चे
न्द्रिय जीव चवी गया बाद ते चर्ममां कदाच एम कहेवामां आवे के-- नवा अन्य त्रस जीवो उत्पन्न थाय छे, चाम पञ्चेन्द्रियर्नु अङ्ग छे, अने पञ्चे- आ त्रस जोवोनी हिंसा थती हावाथी न्द्रियर्नु अङ्ग राखq ते जीवहिंसा छे। चामडं त्रस जोवोनी हिंसाथीज प्राप्त आ वात पण व्याजबी नथो, कारण के थाय छे एम अमो कहीए छीए । आ वात दिगम्बरना मुनिओ जे मोर पिच्छी राखे पण व्याजबी नथी, कारणके तजीवप्रयुक्ताछे ते पण पञ्चेन्द्रियनु अङ्ग छे, तेमां तारहित शुष्क चर्ममां स जीवनी पण जीव हिंसा मानवी पडशे, अने उत्पत्ति ज नथी तो पछी हिंसानी वात दिगम्बरो ते वात इष्ट करी शके तेम ज क्याथी होय। आटला ज माटे चर्म. नथी। कदाच इष्ट करी ले तो तेमना पञ्चकने अजीव संयमना विषयमां बतामुनिने मोर पिच्छी छोडवी पडशे, अने वेल छ ।
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