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________________ लेखक गया है, तथा द्वितीय खण्ड में चार अध्यायों द्वारा सांस्कृतिक एवं शास्त्रीय दृष्टि से मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। ___ जीवन्धरचम्पू के रचयिता महाकवि हरिचंद्र न केवल जैन-साहित्य के अपितु सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। संस्कृत-साहित्य के जैनेतर कवियों ने भी मुक्तकंठ से उनकी काव्य-प्रतिभा एवं साहित्यिक गरिमा को अपने यशोवचनों द्वारा अनेकत्र अभिनंदित किया है। ऐसे महान् कवि की अनुपम कृति का बहुआयामी दृष्टि से मूल्यांकन प्रस्तुत करनेवाली यह शोधपूर्ण कृति निश्चय ही न केवल जैनसमाज के धर्मानुरागियों के लिए, अपितु समस्त भारतीय साहित्य के जिज्ञासुओं एवं अनुसंधाताओं के लिए भी अत्यंत उपयोगी है, और संग्रहणीय भी है। __ ऐसे महनीय प्रकाशन के लिए प्रकाशक संस्थान के साथ-साथ विदुषी लेखिका भी हार्दिक बधाई और अभिनंदन की पात्र हैं। . . -सम्पादक ** (8) पुस्तक का नाम : भक्ति प्रसून (कविता संग्रह) . : इंजीनियर अरुण कुमार जैन प्रकाशक : दिवाकीर्ति शिक्षा एवं कल्याण समिति, ललितपुर-284403 (उ.प्र.) संस्करण : इन्द्रधनुषी आवरण, पुस्तकालय संस्करण - मूल्य : मूल्य 21 रुपए मुझे कवि-इंजीनियर श्री अरुण कुमार जैन का 'भक्ति-प्रसून' नामक कविताओं का संग्रह-ग्रंथ हस्तगत हुआ, पढ़कर सुखद आश्चर्य हुआ। अध्यवसाय से इंजीनियरिंग, सेवाकर्म वाले व्यक्ति में संवेदनशीलता, भावुकता एवं सहज सहृदयता सचमुचही अद्भुत लगा। उनकी अध्ययनशीलता कहें अथवा पूर्वजन्म का संस्कार, उनकी कविता 'कितने लघु... कितने महान्' (पृ.70) में जहाँ 'अणोरणीयान महतो महीयान' की ऋषि-मुनियों की विराट कल्पना साकार हुई है, वहीं 'शिक्षा' (पृ.75) नामक कविता बड़े-बड़े राष्ट्रकवियों की भावनाओं को मूर्त रूप देती सी प्रतीत होती है। सचमुच ही इसे प्रकृति की भूल ही कहा जाएगा कि एक कवि-हृदय अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में चला गया जबकि उसे साहित्य के क्षेत्र में आना चाहिए था। किन्तु अब तो यह मानना चाहिए कि प्रकृति ने अपनी भूल स्वीकार ली है। इसलिए उसने कवि के व्यक्तित्व को द्विगणित कर दिया है। प्रस्तुत संग्रह की सभी कविताएँ हृदय की पूर्व सुरभित भावनाओं के साथ स्वंत: स्फूर्त लगी तथा वे उसी प्रकार सरस एवं मधुर हैं, जिस प्रकार इक्षुयष्टि का कण-कण। उसकी भाषा भावनुगामिनी है और मुद्रण निर्दोष एवं नयनाभिराम । -प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन, आरा (बिहार) ** प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 00 93
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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