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वैसे इस कृति का कुन्दकुन्द भारती के तत्त्वावधान में वैज्ञानिक सम्पादन एवं अनुवादपूर्वक गरिमापूर्ण प्रकाशन शीघ्र ही होने जा रहा है। –सम्पादक **
(6) पुस्तक का नाम : हिन्दी गद्य के विकास में जैन-मनीषी पं. सदासुखदास का योगदान लेखिका : डॉ. (श्रीमती) मुन्नी जैन प्रकाशक : पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी एवं
श्री दिगम्बर जैन सिद्धकूट चैत्यालय टेम्पल ट्रस्ट, अजमेर (राज.) संस्करण : प्रथम, 2002 ई. मूल्य : 300/- (डिमाई साईज़, पक्की ज़िल्द, लगभग 345 पृष्ठ) ।
डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी की सहधर्मिणी डॉ. मुन्नी जैन ने श्री दिगम्बर जैन सिद्धकूट चैत्यालय टेम्पल ट्रस्ट, अजमेर (राज.) की प्रेरणा एवं सहयोग से अपना यह शोध-प्रबन्ध पर्याप्त परिश्रमपूर्वक तैयार किया था, और यह प्रकाशन की प्रतीक्षा में था। अब इसका गरिमापूर्ण प्रकाशन होना जैनसमाज के लिए ही नहीं भारतीय दर्शन एवं हिन्दी-साहित्य के अध्येताओं के लिए भी प्रसन्नता का समाचार है।
इस शोध-प्रबन्ध में कुल चार अध्यायों के द्वारा विदुषी-लेखिका ने पं. सदासुखदास जी कासलीवाल का जीवन परिचय तो ऐतिहासिक दृष्टि से प्रस्तुत किया ही है, साथ ही उनके पूर्ववर्ती और समकालीन जैन एवं जैनेतर हिन्दी-गद्यकारों का परिचय देकर एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। तृतीय एवं चतुर्थ अध्यायों में सदासुखदास जी के साहित्य में निहित दार्शनिक वैशिष्ट एवं भाषाशैलीगत वैशिष्ट्य का परिश्रमपूर्वक आकलन प्रस्तुत किया है। इन सबके द्वारा यह शोध-प्रबन्ध निश्चितरूप से महनीय बन सका है।
ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रकाशन के लिए प्रकाशन-संस्थान तो अभिनंदनीय हैं ही, साथ ही विदुषी लेखिका भी ऐसे उपयोगी शोधपूर्ण-ग्रन्थ के निर्माण के लिए बधाई की पात्र हैं।
–सम्पादक **
पुस्तक का नाम : जीवन्धरचम्पू-सौरभ लेखिका : डॉ. (श्रीमती) राका जैन प्रकाशक : जैनमिलन, गोमती नगर, लखनऊ (उ.प्र.) संस्करण : प्रथम, 2002 ई. मूल्य : 100/- (डिमाई साईज़, पेपरबैक, लगभग 220 पृष्ठ)
जैनसमाज की विदुषी डॉ. राका जैन द्वारा निर्मित यह शोध-प्रबन्ध एक महान् जैन कवि के कालजयी-ग्रन्थ का सक्षम आकलन प्रस्तुत करता है। इसमें कुल दो खण्ड हैं, जिनमें प्रथम खण्ड में छ: अध्यायों द्वारा इस ग्रन्थ का साहित्यिक मूल्यांकन प्रस्तुत किया .
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)