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पुस्तक का नाम : परीक्षा सासूची (मराठी नाटिका) लेखिका : श्रीमती ज्योति जितेंद्र शहा प्रकाशक : सुमेरु प्रकाशन, डी-6, राजहंस सोसायटी, तिलक नगर. डोंबिवली (पूर्व) महाराष्ट्र संस्करण : प्रथम, 2002 ई. मूल्य : 40/- (डिमाई साईज़, पेपरबैक, लगभग 80 पृष्ठ)
विगत कुछ वर्षों से मराठी का जैन-साहित्य सम्पूर्ण मराठी-साहित्य में अपनी सक्षम उपस्थिति को दर्ज करा रहा है। इसी क्रम में यह एक नाटिका का संग्रह प्रकाशित हुआ है, जो कि प्रयोगधर्मी धार्मिक एवं सामाजिक नाटिकाओं से सुसज्जित है। यह एक प्रसन्नता की बात है कि मराठी साहित्य के इस संवर्द्धन में सुमेरु प्रकाशन की भूमिका प्रमुख रही है। इस संस्थान से पिछले कुछ वर्षों में ऐसे अनेकों महत्त्वपूर्ण साहित्यिक संस्करणों का प्रकाशन हुआ है, जिन्हें वर्तमान मराठी साहित्य में भरपूर सम्मान मिला है।
ऐसे सामयिक एवं उपयोगी प्रकाशन के लिए विदुषी लेखिका एवं सुमेरु प्रकाशन हार्दिक बधाई एवं अभिनंदन के पात्र हैं।
सम्पादक **
(5) पुस्तक का नाम : जैन लॉ (हिन्दी अनुवाद) · संकलन-संपादन : स्वर्गीय बैरिस्टर चम्पतराय जी जैन प्रकाशक : श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (धर्मसंरक्षिणी) महासभा संस्करण : तृतीय, 2002 ई. मूल्य : 40/- (डिमाई साईज़, पेपरबैक, लगभग 135 पृष्ठ)
हिन्द लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ के समान ही जैनसमाज का ही अपना सामाजिक विधान है, और वह भी प्राचीन आचार्यों के साहित्य पर आधारित है, इसे बहुत कम लोग जानते हैं। बहुत वर्ष पहले धर्मानुरागी स्वर्गीय बैरिस्टर चम्पतराय जी ने Jain Law के नाम से अंग्रेजी में एक पुस्तक लिखी थी, उसका हिन्दी अनुवाद पहले 1926 ई. में प्रकाशित किया गया था। फिर इसका द्वितीय संस्करण 1984 में एवं तृतीय संस्करण अब प्रकाशित किया गया है।
ऐसे कार्यों के प्रेरणास्रोत पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज विगत पचास से अधिक वर्षों से इस कृति की महत्ता को प्रतिपादित कर रहे हैं, और उन्हीं की पावनप्रेरणा से वर्तमान संस्करण का प्रकाशन हुआ है। यद्यपि यह संस्करण विगत संस्करणों का पुनर्मुद्रण मात्र है, इसीलिए इसमें पिछले संस्करणों की जो सम्पादकीय कमियां थी, वे भी यथावत रही हैं, फिर भी युग की मांग के अनुरूप समय पर इसके प्रकाशित होने से इसकी उपयोगिता को कम नहीं आंका जा सकता।
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
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