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________________ (2) पुस्तक का नाम : ऋषभदेव (महाकाव्य) लेखक : कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह प्रकाशक : भारत बुक सेंटर, 17, अशोक मार्ग, लखनऊ-226001 संस्करण : प्रथम, 1997 ई. मूल्य : 150/- (डिमाई साईज़, पक्की बाइंडिंग जिल्द, लगभग 140 पृष्ठ) ___ आदिब्रह्मा तीर्थंकर ऋषभदेव के सम्पूर्ण जीवन-दर्शन को आधुनिक हिन्दी काव्य-शैली में संजोकर इस काव्य में प्रस्तुत किया गया है। नौ सर्गों में विभाजित इस महाकाव्य में विद्वान् लेखक ने अपनी काव्य-प्रतिभा का सक्षम-निदर्शन प्रस्तुत किया है। इसकी विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना में कवि ने भारतीय वाङ्मय के अनुसंधानपूर्वक यह प्रमाणित किया है कि पहले इस देश का नाम जैन-परम्परा के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के पिता नाभिराय के नाम पर 'अजनाभवर्ष' था। और फिर उन्हीं के पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम पर ही इस देश का नाम 'भारतवर्ष' हुआ। उन्होंने अपने प्रत्येक सर्ग में निबद्ध विषय-विवरण को विभिन्न भारतीय प्रमाणों के साथ संक्षेप में अपनी प्रस्तावना में संजोया है। यद्यपि पूर्णत: जैनपुराणों पर ही आश्रित न होते हुए भी यह कृति जैन-परम्पराओं के अनुसार ही तीर्थंकर ऋषभदेव के जीवन-दर्शन को प्रस्तुत करती है। ___इसकी सरलतम भाषा-शैली एवं हृदयग्राही काव्य-प्रतिभा प्रत्येक पाठक को अपनी ओर आकृष्ट करने में पूर्णत: समर्थ है। इसीलिए जैनसमाज के लोगों को यह कृति अवश्य संग्रहणीय एवं पठनीय है। –सम्पादक ** . पुस्तक का नाम : युगंधर भगवान् महावीर (मराठी) संपादक : श्री महावीर कंडारकर प्रकाशक : श्री मिलिंद फडे, 95. मार्केट यार्ड, गुलटेकडी, पुणे (महाराष्ट्र) . संस्करण : प्रथम, (डिमाई साईज़, पेपरबैक, लगभग 150 पृष्ठ) भगवान् महावीर के जीवन-दर्शन के विभिन्न पक्षों पर राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी, डॉ. ए.एन. उपाध्ये, डॉ. विलास संगवे, डॉ. निर्मल कुमार फडकुले आदि अनेकों प्रतिष्ठित विद्वानों के आलेखों के मराठी-प्रारूपों के द्वारा इस कृति का कलेवर निर्मित होने से मराठी जैन-साहित्य के लिए यह रचना अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है। यद्यपि सम्पादन की दृष्टि से इसमें पर्याप्त गुंजाइश है, फिर भी सामग्री की महत्ता इस कमी को भुला देती है। भगवान् महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक-वर्ष के संदर्भ में प्रकाशित इस महनीय एवं प्रासंगिक प्रकाशन के लिए धर्मानुरागी श्री मिलिंद फडे एवं उनका संस्थान वर्धापन के पात्र हैं। –सम्पादक ** 0090 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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