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________________ बंकापुर के जिनालय -अप्पण्ण नरसप्पा हंजे टी.आर्. जोडट्टी ____कर्नाटक के सांस्कृतिक इतिहास की खोज के संदर्भ में, उपयुक्त-संसाधन प्रदान करने में अनेक ग्रामों का योगदान महत्त्वपूर्ण है। ऐसे ग्रामों में 'बंकापुर' का नाम विशेष उल्लेखनीय है। यह बंकापुर हावेरी' जिला में स्थित है। तहसील 'शिग्गांव' की दक्षिण दिशा में दस किलोमीटर दूर पर पूना-बेंगलूर राष्ट्रीय-मार्ग पर स्थित है। जैनधर्म के इतिहास में बंकापुर को एक विशेष और गौरवपूर्ण-स्थान प्राप्त है। शिलालेखों में वंकपुर', वंकापुर', बंकापुर', बंकपुर', बंकापुर', बंकाहुर और साहित्यिक कृतियों में वंकापुर', वेंगापुर', बेंकिपुर आदि नामों से परिचित है। पुराण-संबंधी परम्पराओं के अनुसार द्वापरयुग' तक इसकी प्राचीनता दिखाई देती है। पांडवों के चौदहवें वर्ष के अज्ञातवास के समय में भीमसेन ने यहाँ के एक राक्षस का संहार किया था। ऐसी एक लोककथा आज भी प्रचलित है। ___ लगभग पाँचवीं सदी से बारहवीं सदी तक यह ग्राम जैनधर्म का पुण्यक्षेत्र और प्रसिद्ध विद्याकेन्द्र था। इसका इतिहास बादामी-चालुक्य के समय से प्रारंभ होने पर भी राष्ट्रकूट के समर्थ-दंडनायक निष्ठावान् महासामन्त चेल्लकेतन के समय में प्रसिद्ध जैन-केन्द्र बन गया। इस घराने के प्रख्यात-राजा लोकारिय ई.स. 895-946 में अपने पिता बंकेय के नाम से इस ग्राम को बंकेय का पुर' या 'बंकापुर' नाम रखा। इनके बेटा प्रथम कलिविट्ट (लगभग ई.स. 904-929) और पोता द्वितीय कलिविट्ट लगभग इस 945 में बंकापुर जिन-मन्दिर बना दिया। वीरसेन जी के शिष्य जिनसेनाचार्य जी (लगभग ई.स. 753-838) ने 'पूर्वपुराण' की रचना की। कहा जाता है कि इसके अगले-भाग 'उत्तरपुराण' की रचना गुणभद्राचार्य जी के द्वारा बंकेय के द्वितीय पुत्र लोकादित्य के समय में बंकापुर के त्रिषष्ठी स्तंभवाले जिनालय में ई.स. 898 में पूर्ण हुई।" जैनधर्म के इतिहास में इन दोनों से पहचाना जाता है कि कन्नड़-प्रदेश में संस्कृत में रचित इस प्रथम कृति को हाथी पर अलंकृत कर गुणभद्र आचार्य के शिष्य लोकसेन यति ने जुलूस निकलवाया।" कन्नड़-साहित्य के इतिहास में आदिकवि पंप द्वारा रचित 'आदिपुराण' का स्रोत यही ग्रंथ है। राष्ट्रकूट-परिवार के प्रख्यात राजा अमोघवर्ष नृपतुंग (ई.स. 815-817) समय-समय 0070 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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