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विण्णाणं किं? भूयं पजोगं
-प्रभात कुमार दास
मज्झम्मि दिण्ण-दिट्ठी अण्णाणस्स वि पस्सदि णाणं ।
जह णिक्कसदि सरिओ अंधआरम्मि पयासं ।। 1।। अर्थ :- जैसे सूर्य अंधकार के बीच में ही अपने प्रकाश (रोशनी) को निकालता है, वैसे अज्ञानता से भरी दुनिया में जो दृष्टि को सही रास्ते पर रखता है, उसे ज्ञान दिखाई देता है।
णाणं विज्जदि त्ति जणो जह जाणदि।
तह अणुभवदि जणो णाणं त्ति भणदि।। 2 ।।. - अर्थ :- जैसे ज्ञान है' —यह लोक मानता है, उसीप्रकार ज्ञान को अनुभव करता है, ऐसा लोक कहता है।
विण्णाणं किं ति पण्हमुत्तरदि सरस्सदी।
जो दिण्ण-दिट्ठीए हि करेदि भूयं पजोगं ।। 3 ।। अर्थ :- विज्ञान क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में सरस्वती (दवी) कहती है कि, जो ज्ञान में दत्तदृष्टि (व्यक्ति) से बारम्बार/हमेशा प्रयोग करता है।
विण्णाणं जाणिदुं पारदि सो उल्लविदुं य ।
तरदि णाणम्मि मज्झम्मि मीणो जलस्स व्व ।। 4।। ___ अर्थ :- वह विज्ञान को जान पाता है, और बता पाता है, जो ज्ञान के बीच में जल में मीन के समान सन्तरण करता है।
जंण किद-पयासो पावदि तिहुयणभमणेण । ' तं किद-पयासो अयाले णाणम्मि पासदि।।5।। अर्थ :- जिस (अनुभव) को त्रिभुवनभ्रमण में प्रयासरत होकर (व्यक्ति) नहीं पाता है, उसे ज्ञान में प्रयास कर वह देख सकता है। ____ . स णरो व णरो होइ सया ठिदो संति जस्स ।
आचारमणुसरदि सूरिओ व चंदो व्व य।।6।। अर्थ :- वह मनुष्य की तरह मनुष्य है जिस की (मन में) सदा शांति रहती है और जो सूर्य और चन्द्र के समान आचारों का अनुसरण करता है।
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
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