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बम्ही-बम्हरूविणा अक्खराण अक्खिणा सुंदरी अंकिणा उमा-रमा-सुलक्षणा चंदणा वि अंजणा बाल-बालिगाधणा जणा जणा मणा मणा पज्जावरण-रक्खणा
ब्राह्मी का ब्रह्मरूप अक्षरों के अक्ष से सुन्दरी के अंक से उमा-रमा-सुलक्षणा। चंदना भी अंजना बाल-बालिकाओं के जन-जन के मन बसे पर्यावरण की रक्षणा।
सच्चे भक्त की प्रार्थना 'नास्था धर्मे न वसुनिचये नैव कामोपभोगे । यद्भाव्यं तद्भवतु भगवन् ! पूर्वकर्मानुरोधात् ।। एतत्प्रार्थ्यं मम बहुमतं जन्मजन्मान्तरेऽपि।
त्वत्पादाम्भोरुहयुगगता निश्चला भक्तिरस्तु ।। अर्थ :- हे भगवान् ! मेरी न धर्म में, न अर्थ में आस्था है, भूमण्डल राज्य की चाह भी नहीं है तथा काम (स्पर्शन और रसना इन्द्रिय) भोग (घाण, चक्षु और श्रोत्र) -इन पाँच इन्द्रियों से सम्बन्धित उपभोग की आशा भी नहीं करता हूँ। हे भगवन् ! पूर्वकर्मों के अनुसार जो कुछ भी होनेवाला है, वह हो। आपके चरणकमलों में मेरी अविचल भक्ति जन्म-जन्मान्तरों में भी बनी रहे —यही एक प्रार्थना है। ..
शत्रु को जीतने का तरीका
जीवन्तु मे शत्रुगणा: सदैव – (चाणक्य) राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपने मित्रों के प्रति जितने विनम्र एवं मधुर थे, शत्रुओं के प्रति उतने ही उदार एवं सहृदय थे। अनेक बार शत्रुओं को वे मित्र की तरह घर बुलाते, उनके साथ बातचीत करते और बड़ा ही स्नेह प्रदर्शित करते।
लिंकन की यह नीति और व्यवहार उनके मित्रों को पसन्द नहीं आया। एक बार एक मित्र ने झुंझलाकर लिंकन से कहा- "आप अपने शत्रुओं के साथ मित्र की तरह व्यवहार क्यों करते हैं, इन्हें तो खत्म कर डालना चाहिए।" ___मधुर मुस्कान के साथ लिंकन ने उत्तर दिया- “मैं तो तुम्हारी बात पर ही चल रहा हूँ, शत्रुओं को खत्म करने में ही लगा हूँ ! हाँ, तुम उन्हें जाने से मार डालने की बात सोचते हो और मैं उन्हें मित्र बनाकर।" शत्रुता को मित्रता में बदलने का, कटुता को मधुरता में बदलने का कितना सुन्दर तरीका था यह।
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)