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________________ पज्जावरण-रवणा (पर्यावरण रक्षण) -डॉ. उदयचन्द्र जैन एस दिव्व-देसणा पुढवी-जल-एसणा अग्गी-रुक्ख-रक्खणा वाऊ-वंत-वंतणा लक्खणा परमप्पणा अप्प-सुद्ध-सुद्धिणा पुष्पदंत-भूदिणा कुंदकुंद-सूरिणा अप्प-विसुद्धिणा महणिज्ज जण-जणा सिद्धरूव-वंदणा अणुण्वदीण धारणा पारणा आराहणा देहसुद्धि-सुद्धणा अप्परूप-लक्खणा हि लक्खणा सुलक्षणा जदि-वदी-रिसि-गणा मुणिंद सूर-सूरिणा कहेंति सव्व-छंदणा रक्ख रक्ख भावणा अणंत-जीव-रासिणा भासि-भासि-भासिणा पदेय गच्छ-गच्छिणा सुदेण सम्म-अज्झयणा यही है दिव्य-देशना पृथ्वी-जल-एषणा अग्नि-वृक्ष की रक्षा का बहती वायु की देख-भाल, परम, करें आत्मिक शुद्धभावना से भूतबलि पुष्पदंत कुन्दकुन्द सूरि संतों की आत्म-विशुद्धि-भावना से महनीय जन-जन की सिद्धरूप-वन्दना अणुव्रतधारियों की यही धारणा पारणा-आराधना देहशुद्धि-शुद्धता है आत्मरूप की खोजरूपी लक्षणा भी सुलक्षणा यति, व्रती ऋषिगण मुनि, मुनीन्द्र सूरि भी कह रहे छंदना रक्ष रक्ष भाव हो अनंत जीव-राशि का भाषता भी भाषना प्रत्येक गच्छ-गच्छ से श्रुत के उचित अध्ययन से प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0067
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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