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________________ तक मूलगाथा/पद्य-लेखन और उसके अर्थ में ऐसी विकृति/अवर्णवाद नहीं किया। आगम-परिवर्तन का यह नया प्रयोग है। समग्ररूप से प्रज्ञाश्रमणी जी ने कुंडपुर को कुण्डलपुर-नालंदा बनाकर कहा कि 'धवला' के प्रमाण से कौन सहमत नहीं होगा? उनके समर्थक विद्वान् श्री पं. शिवचरणलाल जी एवं अन्यों ने भी अपने आलेखों में 'कुंडपुर' के स्थान पर 'कुण्डलपुर' लिखकर भ्रम पैदा किया। विद्वानों और समाज को इसके गर्भित उद्देश्य को समझकर संस्कृति/साहित्य की रक्षा-सुरक्षा करना अपेक्षित है। दूसरे, प्रज्ञाश्रमणी जी ने गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती जी के माध्यम से यह धारणा बनाने का प्रयास किया कि सन् 1974 में आचार्यश्री देशभूषण जी, आचार्यश्री धर्मभूषण जी एवं पंडितप्रवर सुमेरु चन्द्र दिवाकर आदि के मध्य चर्चा में सभी ने कुण्डलपुर को स्वीकार किया, वैशाली किसी को इष्ट नहीं थी। यह चर्चा कब, कहां और कैसे हुई, इसका कोई प्रमाण नहीं है। फिर जैसा कि ऊपर पैरा 2 में दर्शाया है कि आचार्यश्री देशभूषण जी द्वारा एक हजार पृष्ठ के ग्रंथ 'भगवान् महावीर और उनका तत्त्वदर्शन' में कुण्डपुर (वासोकुण्ड) को जन्मस्थली सिद्ध/व्यक्त की हो, वहाँ निजी मौखिक चर्चा में उसको विपरीत-धारणा व्यक्त करना संदिग्ध और हास्यास्पद है। वैशाली को, मात्र वैशाली को कभी किसी ने जन्मभूमि नहीं माना और मानने का प्रश्न भी नहीं उस्ता। गणिनी-प्रमुख के नाम से उक्तानुसार भ्रम पैदा करने से महाव्रत की धारणा कुंटित होती है। अत: उक्त तर्क भी स्थिति में सहयोग नहीं करता। तीसरे, प्रज्ञाश्रमणी जी ने बिना आधार दिये 'विदेह' देश को पूरा बिहार' प्रान्त और कुण्डपुर-विदेह को कुण्डलपुर-नालंदा मानने की स्वकल्पितं घोषणा की, जो नितांत भ्रम एवं अज्ञानपूर्ण है। यह उन्होंने इसलिए किया, जिससे वे कुण्डलपुर-नालंदा को विदेह देश में स्थित होना सिद्ध कर सकें। उत्तरपुराण' में वर्णित महावीर चरित्र के अध्ययन से यह स्थिति स्पष्ट होती है कि वैशाली के राजा चेटक की सात पुत्रियाँ थीं। त्रिशला 'कुण्डपुर' (विदेह) के राजा सिद्धार्थ से विवाही थी। मृगावती 'वत्स' देश ‘कौशाम्बी' नगरी के राजा शतानीक से विवाही थी। सुप्रभा का विवाह दशार्ण' देश के हमकच्छपूर' के राजा दशरथ से हुआ था। प्रभावती का विवाह कच्छदेश के 'रोरुक' नगर के राजा उदय से हुआ था। चेलना का विवाह मगध के राजा श्रेणिक बिम्बसार से विशिष्ट घटनाक्रम में हुआ था। ज्येष्ठा और चन्दना अविवाहित रहीं और जिन-दीक्षा ग्रहण की। दिगम्बर-जैन-आगम में चम्पापुर, मूलनगर कुण्डपुर आदि का भी उल्लेख है। इनमें बिदेह, मगध, चम्पापुर, कुण्डपुर, मूलनगर आदि राज्य बिहार-प्रांत में आते हैं। यदि विदेह को ही बिहार मान लेंगे, तो अन्य राज्यों की क्या स्थिति होगी। इसप्रकार दिगम्बरजैन-आगम के अनुसार प्रज्ञाश्रमणी जी की राज्य-सम्बन्धी उक्त-कल्पना आधारहीन, अयथार्थ एवं गल्प जैसी है। -(उत्तरपुराण, पर्व 75, श्लोक 6-14)। प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0053
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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