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. सिन्धु-देश में होना चाहिये आदि -आदि ।
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5. वैशाली या कुण्डलपुर (बडागांव ) - नालंदा महावीर की जन्मस्थली नहीं है, इसकी समीक्षा करने के पूर्व यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि दिगम्बर जैन - आगम-ग्रन्थों में सर्वत्र भगवान् महावीर की जन्मस्थली 'विदेह' देश के 'कुण्डपुर' को स्वीकार किया है। किन्हीं ग्रन्थों में 'कुण्डपुर' लिखा है। एक में 'कुण्डग्राम' एवं एक में 'कुण्डले' लिखा है। किसी भी ग्रंथ में कुण्डलपुर, कुण्डलपुर - नालंदा या वैशाली को जन्मस्थली नहीं माना। यह भी उल्लेखनीय है कि तत्कालीन राजनैतिक मानचित्र के अनुसार 'कुण्डपुर' वैशाली - गणराज्य के अंर्तगत था, जबकि 'नालंदा' राजगृही नगर का अंग होकर मगधराज्य के अंर्तगत था । 'त्रिषष्टिशलाका चरित्र' के अनुसार 'राजगृह' के 'नालंदा पाडा' में महावीर ने दूसरा वर्षावास किया था और वहाँ से 'कोल्लाग ग्राम' विहार किया (पर्व 10, सर्ग 3, श्लोक 370-372 ) । भौगोलिक रूप से नालंदा के निकट कुण्डलपुर का अस्तित्व कभी नहीं रहा । वर्तमान में नालंदा के निकट बड़ागांव में परम्परागतरूप से कुण्डलपुर की मान्यता हमने की थी, जो शोध- खीज से पुष्ट नहीं हुई। जबकि कुण्डपुर (वासोकुण्ड) में दो बीघा पवित्र भूमि सदियों से बिना जुती 'अ-हल्ल' नाम से छोड़ी हुई • है। इस भूमि के मध्य में प्रतिवर्ष दीपावली के दिन स्थानीय जन श्रद्धापूर्वक दीपक जलाकर महावीर की पवित्र आत्मा का स्मरण करते हैं। भू-स्वामी ने यह भूमि भगवान् महावीर के स्मारक निर्माण हेतु निःशुल्क समर्पित की है। कुण्डपुर - नालंदा को जन्मभूमि माननेवाले पक्ष का कर्त्तव्य है कि वह अपने कथनों की पुष्टि सप्रमाण सिद्ध करे। ऐसा होने पर वह अपने पक्ष को पुष्ट कर सकेगा, अन्यथा आधारहीन - दोषारोपण और चरित्रहनन से क्या सिद्ध होगा, मात्र सामाजिक - विद्वेष पैदा करने और अपनी मनोवृत्ति के प्रदर्शन के ।
6. उक्त परिप्रेक्ष्य में आर्यिका चन्दनामती जी, पं. नरेन्द्र प्रकाश जी, पं. शिवचरण लाल जी, डॉ. अभय प्रकाश जी एवं अन्यों द्वारा उठाये गये बिन्दुओं की संक्षिप्त - विचारणा इसप्रकार है
आर्यिका श्री चंदनामती जी - प्रज्ञाश्रमणी जी द्वारा जो आगम- प्रमाण दिये हैं, ''धवला' को छोड़कर, उन सभी में 'विदेह - कुण्डपुर' का उल्लेख है । 'तिलोयपण्णत्ति' में 'कुंडलेवीरो' लिखा है। कहीं भी 'नालंदा - कुण्डलपुर' का उल्लेख नहीं है । 'धवला' पुस्तक 9, पृष्ठ 121 गद्य में बदल दिया ('तीर्थंकरवाणी', अप्रैल '02, पृष्ठ 14 ) । यह किस उद्देश्य एवं अधिकार से उन्होंने किया, इसकी जानकारी अपेक्षित है । महाकवि पुष्पदंत ने ‘वीरजिणिंदचरिउ' में 'कुंडउरि राउ सिद्धत्थ सहित्थु ' कहकर कुंडपुर की पुष्टि की है, न कि कुण्डलपुर की (1/6, पृ. 10 ) । प्रज्ञाश्रमणी जी ने हिन्दी - अर्थ लिखते समय कुण्डलपुर के साथ नालंदा भी अपनी ओर से जोड़ दिया। किसी सत्यमहाव्रतधारी ने अभी
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प्राकृतविद्या + जनवरी-जून 2003 (संयुक्तांक )