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प्रस्तावना श्री पं. सुमेरु चन्द्र जी दिवाकर सिवनी द्वारा लिखी गयी। इस ग्रंथ की सम्पूर्ण विषयवस्तु कुण्डपुर-वैशाली को समर्पित है। इसमें बाबू डॉ. कामता प्रसाद की वर्ष 1929 एवं 1932 में प्रकाशित पुस्तकें क्रमश: 'भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध' तथा 'दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि', नवलशाहकृत वर्द्धमानचरित्र', 'गौतम चरित्र' जैसी शोध-खोज भरी रचनाएँ अविकल प्रकाशित हैं। इन सभी में ठोस-प्रमाणों-सहित भगवान् महावीर की जन्मस्थली बासोकुण्ड-बसाड़ (कुण्डपुर-वैशाली) सिद्ध की है। प्रस्तावनालेखक श्री दिवाकर जी एवं आचार्यश्री एकमतेन इससे सहमत थे, अन्यथा इसका प्रकाशन सम्भव भी नहीं था। जन्मस्थली की खोज में किन-किन विद्वान् मनीषियों का योगदान था, इसका विवरण 'प्राकृतविद्या', जुलाई-सितम्बर '02, दिशाबोध' अक्तूबर '02, 'जैनसन्देश' एवं 'समन्वयवाणी' अक्तूबर '02 अंकों में देखा जा सकता है।
3. जिनेश्वरी-दीक्षा धारणकर कुछ नया कीर्तिमान करने की मंगलभावना से आर्यिका चंदनामती जी हस्तिनापुर का आलेख 'भगवान् महावीर की जन्मभूमि-कुण्डलपुर' 'अर्हत्वचन' अप्रैल-जून '01 एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ। आलेख में प्रज्ञाश्रमणी जी ने नवीन शोध को कुठाराघाती बताते हुए दिगम्बर जैनग्रन्थों एवं अन्य अपुष्टचर्चाओं के आधार पर भगवान् महावीर की जन्मस्थली कुंडपुर (नालंदा) सिद्ध किया । उनके तर्कों की समीक्षा आगे की गयी है। इस आलेख के प्रकाशन के बाद जैन-पत्रकारिता-जगत्, जैन-विद्वान्, संस्थाएँ एवं साधुवर्ग सभी में भूचाल-सा आ गया और अपने-अपने पक्ष के खण्डन-मण्डन-हेतु अपनी अनेकान्तमयी प्रज्ञा का असंगत-तर्क, सम्मान, भ्रम-निर्माण, आगम-परिवर्तन आदि में अनेक प्रकार से हुआ और हो रहा है। लगता है जैन-जगत् समस्या-विहीन हो गया है और एकमात्र समस्या भूगोल के गर्त में समाए विद्वेषियों द्वारा जमींदोज किये 'कुण्डपुर' को खोज निकालना ही शेष रह गयी है, और वह भी मात्र अपनी पूर्व-निर्धारित-धारणानुसार।
4. पूर्व में सर्वमान्य और स्व-मान्य कुण्डपुर-वैशाली (वासोकुण्ड) के विरुद्ध तर्क इसप्रकार हैं :- यह विदेशियों की उपज है, जिन्हें जैन-आगम एवं परम्परा का ज्ञान नहीं होता। वे अप्रमाणिक भी हैं। शोध-खोज का आधार दिगम्बर-जैन-साहित्य से भिन्न श्वेताम्बर, बौद्ध एवं अन्य साहित्य है। उनको स्वीकारने से हमें उनकी अन्य-मान्यताएँ भी स्वीकारना होंगी, जो अनेक समस्याओं को जन्म देगी। अत: निर्णय दिगम्बर-जैनआगम के आधार पर किया जाना चाहिये । वैशाली (नानी-नाना) के निकट 'कुण्डपुर' मानने से सिद्धार्थ 'घरजमाई' जैसे तुच्छ हो जावेंगे। तीर्थंकर का जन्म 'ग्राम' संज्ञामूलक स्थान में (कुण्डग्राम) कैसे हो सकता है। एक लाख योजन का ऐरावत हाथी कहाँ भ्रमण करेगा? कुण्डपुर की मान्यता स्थापना-निक्षेप एवं परम्परा श्रद्धा का विषय है। वैशाली-कुण्डपुर स्वीकारने से आगम-विरुद्ध विसंगतियाँ उत्पन्न होंगी। वैशाली की खोज
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
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